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अपनी संस्था के आचार्य के प्रति सम्मान होना चाहिए किन्तु इस आधार पर अपना जीवन व्यतीत करना कि - "हम अपनी संस्था के आचार्य (उदाहरण - श्रील प्रभुपाद) के अलावा किसी के ग्रन्थ नहीं पढ़ते— क्या यह बुद्धिमता है? इस video के द्वारा स्पष्ट किया जा रहा है।
By SRI SRI 108 SHACHINANDAN JI MAHARAJअपनी संस्था के आचार्य के प्रति सम्मान होना चाहिए किन्तु इस आधार पर अपना जीवन व्यतीत करना कि - "हम अपनी संस्था के आचार्य (उदाहरण - श्रील प्रभुपाद) के अलावा किसी के ग्रन्थ नहीं पढ़ते— क्या यह बुद्धिमता है? इस video के द्वारा स्पष्ट किया जा रहा है।