* मनुष्येतर जीव भी मुक्तिकी प्रक्रियामें हैं क्योंकि वे भोगकर कर्मफल काटते हैं।
* क्रमशः स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीरों के अभिमान का त्याग।
* प्रारब्ध, संचित और क्रियमाण कर्म और उनके नाश की प्रक्रिया।
* मनुष्यका प्रयास और आत्माकी कृपा दोनों आवश्यक है आत्मसाक्षात्कार के लिये।