दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

योग-वेदान्त।एपिसोड 275. अनुगीता 21 (1) - ब्राह्मणगीता। जीवन की प्रत्येक क्रियामें यज्ञकी भावना करें।


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* महाभारत का लेखन। गणेशजी ने लेखक बनने के लिये शर्त रखा कि बीच में लेखनी रुकनी नहीं चाहिये। तब वेदव्यासजी ने कहा ठीक है,किन्तु विना समझे आप एक शब्द भी नहीं लिखेंगे। इस प्रकार जब व्यासजी को कुछ सोचने स्मरण करने में समय लगता था तब वे कोई रहस्यमय क्लिष्ट श्लोक बोल देते थे जिसे समझने में गणेशजी को समय लगता था। उतने देर में व्यासजी अपना कथ्य स्मरण करके व्यवस्थित कर लेते थे।
* जीवन की प्रत्येक क्रिया में यज्ञकी भावना करें। केवल अग्नि में आहुति देना ही नहीं, खाना, पीना, श्वास लेना, बोलना, सुनना, सूंघना, प्रजनन प्रक्रिया, मल-मूत्र त्याग करना इत्यादि सभी क्रियायें यज्ञ ही हैं।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati