कल थी काशी, आज है बनारस

Yogi शिव or fabulous family man Shankar का अन्तर


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Namaskaram, Sabhi ko Jate hua September aur aate hue October ki or se bahut bahut shubh kamna. Sab kuch bahut Sundar aur shubh ho. बहुत समय बाद अंततः मैंने अपने phone main हिन्दी और उससे जुड़े फ़ॉन्ट aur app को कीबोर्ड main जगह बना ली। खैर हिन्दुस्तान main रहकर अगर हिन्दी bol नहीं रहे, लिख नहीं रहे तो फिर क्या kiya। हिन्दी दिवस main नहीं manati। are ye कोई लुप्त हो रही भाषा नहीं बस इसके बोलने वाले इसका महत्व नहीं समझते यही दुख hai। मैंने तो माँ, पिता, नाना, नानी, दादा दादी, पड़ोस, स्कूल college, प्रोफेशनल जीवन main भी हिन्दी ही चुना hai। पहले इसने mujhe aur फिर मैंने इससे chuna। हमारा तो प्रेम संबंध hai। यह तो खून main बहती है, हिन्दी पर विचार kabhi aur। आज की कहानी बहुत मजेदार aur प्रेरणादायक hai। kaise पूछो, ? Jao सुनो, और फिर अपने सुझाव दे कर बताना कि कहानी kaise lagi। एक समय main कैलाश पर्वत पर एक दिन bahut बड़े महोत्सव की तैयारी हो रही थी सभी साज श्रृंगार कर yaha आने को the ganesh जी भी आए और पिता के सामने gaye। dekha भोलेनाथ साधना main लिन hain। आग्रह कर जगाया pucha आप तैयार नहीं हुए, shiv जी बोले तैयार तो hun, कब से ganesh जी बोले पिता जी देखो माता कितनी सुन्दर और मनमोहक लाग रही उनके साथ ऐसे भूतनाथ रूप main ही आसान पर baithenge। मेहमान aa rahe। थोड़ा नहा धोकर साज श्रृंगार कर आइये। mahadev बोले acha, gaye मानसरोवर नहा कर तैयार होकर कैलाश aaye। yaha सब जान उनको एकटक निहारते रह gaye। उस रूप को देख कर ganesh जी सोचने लगे पिता जी के इस रूप के साथ meri माता धूमिल lagengi। ये क्या कर दिया maine। मेरे पिता का भूतनाथ रूप ही सबसे सुन्दर hai। क्युकी इस रूप main तो कोई भी Prabhu के समक्ष उपस्थित भी नहीं रह sakta। mahadev ke इस अति सुन्दर रूप पर समस्त ब्रम्हांड के करोड़ों कामदेव की सुंदरता फीकी lag रही thi। सभी देवी देवता बस shiv जी के इस रूप को निहार रहे the। अब ganesh जी पिता के पास आए, प्रणाम कह कर प्राथना की Prabhu माफ करें mujhe मेरे शब्दों और पहले के आग्रह के liye। Kripa कर अपने भूतनाथ रूप main punah aa jayen। मुझे मेरी भूल का abhas हो गया hai। Kripa कर mujhe क्षमा karein। bhole नाथ मुस्कुराए और कहा thik hai, पर पुत्र क्या कुछ समय पूर्व tumne ही mujhe साज कर आने का आग्रह नहीं किया था । फिर अब कह रहे की पहले वाला रूप ही acha tha। ganesh जी की मनोदशा भाप कर shiv जी फिर से भूतनाथ रूप main aa gaye। जटा जुट धारी, शंभू त्रिपुरारि, जो अरूप है, स्वरुप है, जो अजन्मा है, जो कहीं नहीं पर हर जगह है, जो सर्वव्यापी है, सर्वज्ञात हैं, जो हर जीवित और मृत्यु main hai, जिसकी काया bhasmibhoot है, जो मुण्डों की माला और नीले कंठ वाले हैं, जो चन्द्रशेखर हैं, जो सत्यम, Shivam, सुन्दरम hain। मीनिंग सत्य shiv हैं, shiv ही सुंदर हैं । जैसे सत्य से परे कुछ नहीं वैसे ही shiv से परे कुछ nahi। जो कुछ नहीं वही तो shiv hai। hai की nahi। आज की कहानी का मॉरल क्या hai।।।ki showoff पर mat Jao, मन की सुंदरता पर ध्यान do, जो मन सुंदर है सरल है वही bhagwan है, जो showoff है वो भ्रम है, छल hai। इसलिए तो कहते है भैया, कहे showoff पे इतना जोर दिया है, यही showoff दुनिया डुबो रहा hai।।। kaise है कहानी यह जरूर बताएं क्युकी सुधार जरूरी hai। sunte रहिए banarasi/ singh ko। 'sanatan shehar kashi ke banaras banne ki yatra' podcast par। ये हर जगह hai। anchor, sportify, गूगल, तो doston सुनते रहिए अपने सुन्दर इतिहास को, ताकि future acha ho। हर हर mahadev।।
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कल थी काशी, आज है बनारसBy Banarasi/singh