लोककल्याणके लिये उपदेश देना था। उपदेश उसीको देना सार्थक होता जो अज्ञानी हो। अतः ब्रह्माजी ने वसिष्ठको पहले शाप देकर सर्वज्ञसे अज्ञानी बनाया। तदुपरान्त तत्वोपदेश किया। अन्यथा दोनों सर्वज्ञ थे तो कौन किससे किसलिये प्रश्न करता और कौन किसको उपदेश देता ? उपदेश न होता तो मनुष्यों को ज्ञान कैसे होता ? लोककल्याण कैसे होता?