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November 01, 2020योगवासिष्ठ 2.15, मनुस्मृति 4.12 एवं श्रीमद्भगवद्गीता 12.13-19 मोक्षका तीसरा द्वारपाल- संतोष।10 minutesPlayसन्तोषो हि परं श्रेयः संतोषः सुखमुच्यते। संतुष्टः परमभ्येति विश्राममरिसूदन।।यो.वा. 2.15.1।। संतोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्। संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।मनु, 4.12।।...moreShareView all episodesBy Sadashiva Brahmendranand SaraswatiNovember 01, 2020योगवासिष्ठ 2.15, मनुस्मृति 4.12 एवं श्रीमद्भगवद्गीता 12.13-19 मोक्षका तीसरा द्वारपाल- संतोष।10 minutesPlayसन्तोषो हि परं श्रेयः संतोषः सुखमुच्यते। संतुष्टः परमभ्येति विश्राममरिसूदन।।यो.वा. 2.15.1।। संतोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्। संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।मनु, 4.12।।...more
सन्तोषो हि परं श्रेयः संतोषः सुखमुच्यते। संतुष्टः परमभ्येति विश्राममरिसूदन।।यो.वा. 2.15.1।। संतोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्। संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।मनु, 4.12।।
November 01, 2020योगवासिष्ठ 2.15, मनुस्मृति 4.12 एवं श्रीमद्भगवद्गीता 12.13-19 मोक्षका तीसरा द्वारपाल- संतोष।10 minutesPlayसन्तोषो हि परं श्रेयः संतोषः सुखमुच्यते। संतुष्टः परमभ्येति विश्राममरिसूदन।।यो.वा. 2.15.1।। संतोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्। संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।मनु, 4.12।।...more
सन्तोषो हि परं श्रेयः संतोषः सुखमुच्यते। संतुष्टः परमभ्येति विश्राममरिसूदन।।यो.वा. 2.15.1।। संतोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्। संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।मनु, 4.12।।