दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

योगवासिष्ठ 2.15, मनुस्मृति 4.12 एवं श्रीमद्भगवद्गीता 12.13-19 मोक्षका तीसरा द्वारपाल- संतोष।


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सन्तोषो हि परं श्रेयः संतोषः सुखमुच्यते। संतुष्टः परमभ्येति विश्राममरिसूदन।।यो.वा. 2.15.1।। संतोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्। संतोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।मनु, 4.12।।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati