दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

योगवासिष्ठ, 2.6 भाग्य और पुरुषार्थ भाग 4


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जहां प्रयत्न करने पर भी कार्य सफल न हो अथवा किसीके द्वारा असफल कर दिया जाय, वहांभी अपना पूर्वकर्म ही बाधक होता होता है। जब पूर्वकर्म वर्तमान कर्म से अधिक प्रबल होता है तब अधिक श्रम करना पड़ता है। बहुत प्रबल होता है तो कार्य सफल नहीं होता। फिर भी शास्त्र और सत्संग के मार्गदर्शन में प्रयत्न करना ही चाहिये।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati