दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

योगवासिष्ठ, 2.9 शुभवासनाओं का आश्रय लेकर अशुभ वासनाओं पर विजय प्राप्त करें।


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वासना शुभ अशुभ दो प्रकार की होती है। नदी की दो धाराओंकी भांति । एक धारा अशुभ की ओर जा रही है, दूसरी शुभकी ओर। इनमेंसे एकको रोकेंगे तो दूसरी धारा स्वतः प्रबल होगी। शनैः शनैः रोकना चाहिये, अचानक नहीं, जैसा कि भगवद्गीतामें भी कहा है- शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया। पूर्वजन्मकी अशुभवासना का वर्तमान की शुभवासना द्वारा निराकरण करना चाहिये।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati