वासना शुभ अशुभ दो प्रकार की होती है। नदी की दो धाराओंकी भांति । एक धारा अशुभ की ओर जा रही है, दूसरी शुभकी ओर। इनमेंसे एकको रोकेंगे तो दूसरी धारा स्वतः प्रबल होगी। शनैः शनैः रोकना चाहिये, अचानक नहीं, जैसा कि भगवद्गीतामें भी कहा है- शनैः शनैरुपरमेद् बुद्ध्या धृतिगृहीतया। पूर्वजन्मकी अशुभवासना का वर्तमान की शुभवासना द्वारा निराकरण करना चाहिये।