केवल ज्ञानसे ही जीवकी मुक्ति होती है,कर्म अर्थात् तीर्थ व्रत पूजा उपासना इत्यादि से नहीं। समाधि से भी नहीं। किन्तु कर्म ज्ञान की पूर्ववर्ती सीढी़ है। कर्म चित्तकी शुद्धि के लिये हैं। चित्त शुद्ध होने पर ही ज्ञान होता है।
केवल ज्ञानसे ही जीवकी मुक्ति होती है,कर्म अर्थात् तीर्थ व्रत पूजा उपासना इत्यादि से नहीं। समाधि से भी नहीं। किन्तु कर्म ज्ञान की पूर्ववर्ती सीढी़ है। कर्म चित्तकी शुद्धि के लिये हैं। चित्त शुद्ध होने पर ही ज्ञान होता है।