वसिष्ठने रामको जिस आकाशज ब्राह्मण का उपाख्यान सुनाया वह ब्रह्मा ही है। उसीके लिये मृत्यु और यम का संवाद हुआ था। वह ब्रह्मा ही समष्टि मन है। यह सृष्टि उसी मनका संकल्प है। ब्रह्मा का केवल आतिवाहिक शरीर है क्योंकि वह मनोमात्र है , जीवों का शरीर आतिवाहिक के साथ आधिभौतिक भी है। ब्रह्मा स्वयं मनोरूप है और यह जगत् उसका संकल्पमात्र है अतः मनोराज्यकी भांति यह जगतभी असत् है। वस्तुतः आतिवाहिक ही आधिभौतिक रूप से भी प्रतीत होता है । ऐसी प्रतीतिका कारण यह है कि जीवको अज्ञानवश अपने स्वरूप का और आतिवाहिकत्वका दृढ़ विस्मरण हो गया है। जैसे भूतपिशाच होते नहीं किन्तु रोगीको भ्रमवश उनका आकार सा दिखाई देता है उसी प्रकार लोगोंको स्वरूप की दृढ़ विस्मृतिके कारण आतिवाहिक ही आधिभौतिक रूपसे प्रतीत होता है।