भरद्वाज ने अपने गुरु महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण ब्रह्माजी को सुनाया। ब्रह्माजीने प्रसन्न होकर वरदान मांगनेको कहा। भरद्वाज ने वरदान के रूप में जनताको दुःखसे मुक्त करने का उपाय पूछा। इसके लिये ब्रह्माजी भरद्वाज को लेकर वाल्मीकि ऋषि के पास गये और उत्तर रामायण (योगवासिष्ठ) की रचना करने का आदेश दिये। तदुपरान्त वाल्मीकि ऋषि भरद्वाज को श्रीराम के किशोरावस्था के उत्कट वैराग्य और उदासीनता का वर्णन करते हुये उत्तररामायण की भूमिका बताते हैं जिसका उपदेश वसिष्ठजी ने श्रीराम को उस समय किया था जब श्रीरामकी अवस्था 16 वर्ष पूरी नहीं हुयी थी। श्रीराम गुरुकुल से लौटकर तीर्थयात्रा किये। तीर्थयात्रा से लौटने के उपरान्त अत्यंत उदासीन रहने लगे। दशरथजी उनकी उदासीका कारण जानने का प्रयत्न करते हैं। उसी क्रममें विश्वामित्र जी आते हैं अपने यज्ञकी रक्षा हेतु श्रीराम को मांगने के लिये।