दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वती

योगवासिष्ठ,2.18-20 मुमुक्षुव्यवहार प्रकरणका उपसंहार


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भागत्यागलक्षणा।उपमान और उपमेय में सर्वांगपूर्ण सादृश्यता नहीं खोजनी चाहिये। कथ्यको समझनेके लिये जितनी सादृश्यता घटित होती है केवल उतना ही ग्रहणकर शेषको छोड़ देना चाहिये। संपूर्ण सादृश्यता से तो दोनों वस्तुयें एक ही होंगी फिर किसकी किससे उपमा देंगे? वस्तुतः अद्वैतमें कोई दृष्टांत नहीं। क्योंकि ब्रह्म सद्वितीय नहीं और दृष्टांत के लिये दो का होना आवश्यक है। ***शास्त्रोंमें फलश्रुतियों के कथन केवल सद्वृत्ति जगाकर सदाचार में प्रवृत्त कराते हुये निष्कामता और अद्वैतकी सिद्धिके लिये हैं। कर्मकाण्ड और फलश्रुतियां उसी प्रकार हैं जैसे बच्चे को बुखारकी ओषधि पिलाने के लिये कहा जाय कि पी लोगे तो तुम्हारी चोटी तुम्हारे बडे़ भाई के समान हो जायेगी। *****ज्ञान और सदाचार परस्पर साथ रहकर बढ़ते हैं। एकके विना दूसरा निरर्थक है। ज्ञानं सत्पुरुषाचाराज्ज्ञानात् सत्पुरुषक्रमः। परस्परं गतौ वृद्धिं ज्ञान सत्पुरुषक्रमौ।।2.20.7।। न यावत्समभ्यस्तौ ज्ञानसत्पुरुषक्रमौ। एकोऽपि नैतयोस्तात पुरुसस्येह सिद्ध्यति।।2.20.9।। ****ब्रह्मसाक्षात्कार हो जानेपर विचार , शास्त्र, ज्ञान और गुरु सब छूट जाते हैं।
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दण्डी स्वामी सदाशिव ब्रह्मेन्द्रानन्द सरस्वतीBy Sadashiva Brahmendranand Saraswati