What’sThisAafaq

|ZNMD Poetry Series pt.2| |Ek baat hothon tak jo aayi nahi|


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कुछ बातें अनकही रह जाती है, कुछ यादें बस वहीं खड़ी।
कुछ दिनों पहले इस समंदर में खड़े हो कर ढलते सूरज को सामने से देखते हुए ये महसूस हुआ कि आख़िर क्या क्या पीछे छूट गया।
वो पहली साइकिल को चलाने का एहसास जिसकी चेन हमेशा उतर जया करती थी, वो ठंड वाली दोपहर जो अमूमन घर के छत पर बीता करती थी, वो सनिवार की खिचड़ी जो चोखे और चटनी के बिना कभी पूरी ही नहीं हुई और ऐसी न जाने कई और चीजें।
ये कुछ ऐसी यादें है जो ज़िंदगी से कुछ निकल गई कि कभी कभी लगता है वो किसी और दुनिया और किसी और जन्म की बातें हो। कभी रुक कर पीछे मुड कर देखा ही नहीं क्योंकि सब आगे भाग रहे थे और जो पीछे रह जाता वो इन यादों की तरह कहीं खो जाता। मगर यहाँ खड़े हो कर ये सोचने से मैं ख़ुद को रोक नहीं पाया कि क्या जो पीछे छूट गया वो इतना महत्वहीन था और जिसके पीछे मैं बेतहाशा भाग रहा वो सच में इतना ज़रूरी?
ख़ैर कुछ देर में शाम ढल गई और मैं फिर से उन कामों में लग गया जो मुझे लोगों ने ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए सिखाई है।
ये बीते हुए कल और आने वाले कल के बीच की लड़ाई में मैंने ख़ुद को अक्सर उलझा हुआ ही पाया है और शायद ये लड़ाई अभी लंबी चलेगी।
इसलिए मैं अपने कामों के बीच में ये सोचता रहा कि ये शाम दुबारा कब आएगी और मैं कब एक अच्छा तैराक बन पाऊँगा!
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What’sThisAafaqBy Ankit kumar