DHADKANE MERI SUN

ADHURI MULAKAT...hui thi jinse


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शायद ही कभी भूल पाउंगा ..वह अधूरी मुलाक़ात-अधूरे ख्वाब...

शायद रह जाएंगी मेरी आँखों में ...मेरी ही  तन्हाईयां... रोयेंगे हर मौसम...सूरज चांद सितारे सब... वो देखेंगे जब... मेरे पानी के दोनों घरों में तुम्हारी ही परछाइयाँ... शायद रह जाएंगी मेरी आँखों में...मेरी ही तन्हाईयां.. क्यों कि हमारा मिलन तो तय था ... मगर बिछुड़ना तय नहीं था... इसलिए फिर से मुलाक़ात का कोई सवाल ही नहीं था.. मगर हो गई अब वह भी तय.  .इसलिए हमे मिलना होगा अब अगले जनम... ये ज़रूरी है  तुम आती रहना ख्वाबों ख्यालों में... ये मुलाक़ात तो वाक़ई अधूरी है
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DHADKANE MERI SUNBy Dr. Rajnish Kaushik