पहले पद में जहां मीरा ने प्रभु को भक्तों का तारणहार मानकर उनसे अपनी रक्षा और अपने संकट निवारण की प्रार्थना की है ..... द्रौपदी गजराज और भक्त प्रहलाद का उदाहरण देकर संत शिरोमणि मीराबाई ने प्रभु से इस संसार रूपी भवसागर से स्वयं को पार कराने की प्रार्थना सविनय निवेदन की है । वहीं दूसरे पद में मीरा के समर्पण भाव और दास्य भाव की भक्ति के दर्शन होते हैं .....जहां वे कृष्ण की चाकरी करके भी - सेवा करके भी अति प्रसन्न हैं । वे कृष्ण के रूप- सौंदर्य का वर्णन करती हैं ....वृंदावन की कुंज -गलियों में अपने गोविंद की लीलाओं का गायन करना चाहती हैं और यह चाहती हैं कि जैसे आपने गोप- गोपियों ....ग्वाल- बालों को व अपने भक्तों को अपने दर्शन दिए थे ; उसी प्रकार हे ईश्वर !! आप हमारा भी कल्याण कीजिए।