हिंदी साहित्य के प्रमुख आधार स्तंभ और उपन्यास सम्राट के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले मुंशी प्रेमचंद जिन्होंने हिंदी साहित्य को लोक चेतना ग्रामीण भारत और जनमानस की सच्ची पहचान के साथ जोड़ा जिनकी रचनाएं भारतीय समाज का सही रूप उजागर करती हैं 31 जुलाई 1880 में बनारस के लमही गांव में जन्मे मुंशी प्रेमचंद जिनका वास्तविक नाम धनपत राय था उन्होंने हिंदी उर्दू साहित्य की विकास यात्रा में ऐसे स्वर्णिम अध्याय जोड़ें जिसके लिए साहित्य जगत सदा उनका ऋणी रहेगा ।मुंशी प्रेमचंद 300 से अधिक कहानियां और उपन्यासों की रचना की जिनमें से प्रमुख गोदान, गबन ,निर्मला, सेवासदन ,रंगभूमि ,कर्मभूमि आदि नाम सभी पाठकों के मन -मस्तिष्क पर अपनी अमिट छाप छोड़ते हैं ।ढाई सौ से अधिक उनकी कथाओं का संग्रह "मानसरोवर" शीर्षक से आठ खंडों में प्रकाशित है ।उनके तीन उपन्यासों पर फिल्म निर्माण भी हुआ है --गोदान, गबन और निर्मला । सर्वप्रथम उनका साहित्य देश भक्ति और स्वाधीनता की भावना जो कि उस समय की सबसे बड़ी आवश्यकता थी ;उसकी आवाज को लिए हुए था ।उन भावनाओं से ओतप्रोत उनकी कहानियां "ज़माना" नामक अखबार में प्रकाशित हुईं और उनकी रचना "सोजे़ वतन" पर ब्रिटिश शासन ने प्रतिबंध भी लगा दिया था । ..........लेकिन न मुंशी प्रेमचंद जी का जीवन संघर्ष रुका ; ना उनकी लेखनी की यात्रा रुकी........ और इस प्रकार भारतीय साहित्य को समृद्ध करते हुए उन्होंने अपनी 300 से भी अधिक रचनाओं के साथ मां भारती के साहित्य के कोष को समृद्ध किया । यहां प्रस्तुत कहानी "बड़े भाई साहब" एक मन को छू लेने वाली , बाल मन की भावनाओं को और बाल मनोविज्ञान की खरी समझ बताने वाली एक ऐसी कहानी है ; जो कहीं हमारे मन को गुदगुदा आती है ...... तो कहीं ह्रदय के तारों को छू जाती है और हम सभी लौट पड़ते हैं अपने उस बाल्यकाल की ओर ,,,,,,,,जहां हमें भी शिक्षा पद्धति की अनेक बातें इतनी नागवार गुजरती थी कि हमारे मन के भी क्रांतिकारी विचार उदय होते थे । "बड़े भाई साहब" इस रचना में मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी- उर् मिश्रित इतनी सहज भाषा का प्रयोग किया है कि पाठक और श्रोता का मन प्रेमचंद जी के लेखन की रवानी में सहज रूप से ही बहने लगता है । गंभीर से गंभीर विषय में व्यंग्य की एक धारा का होना प्रेमचंद जी के लेखन की एक प्रमुख विशेषता है कथा - कहानियां पुस्तकों रूप में पढ़ी भी जाती हैं और आज किंडल के रूप में इंटरनेट पर भी उपलब्ध हैं ।......... पर मुझे याद है कि जब रेडियो का ज़माना हुआ करता था सुनहरा साठ का दशक , 70 -80 का दशक तब रेडियो पर कहानियां बांची जाती थी और जब पुस्तके इतनी सुलभ न थी तो हम अपने संपूर्ण मन - प्राणों के साथ अपने कान उस कहानी के ऑडियो की ओर लगा देते थे । ....... तो आज पॉडकास्ट के इस नए और सशक्त माध्यम द्वारा प्रस्तुत है मुंशी प्रेमचंद की अमर कथा "बड़े भाई साहब" का यह कथा वाचन ......... ।