संत कबीर रचित "साखी" का सरल भावानुवाद Presentation By MAYA LOHANI

हिंदी काव्य सागर के कोश से शमशेर बहादुर सिंह रचित "उषा" का भाव व काव्य -सौंदर्य माया लोहनी द्वारा..


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मनुष्य प्रकृति का ही बालक है इसीलिए संभवतः कहा गया है -- तेरी रज में लौट लौट कर बड़े हुए डहैं घुटनों के बल सड़क सड़क पर खड़े हुए हैं पाकर तुझसे सभी सुखों को हमने भोगा ......तेरा प्रत्युपकार कभी क्या हमसे होगा । ब्रह्म मुहूर्त की बेला से सूर्योदय की बेला तक प्रातः काल के अलग-अलग रूप रंगों और छवियों को हम प्राय: देख नहीं पाते या बहुत कम उसका साक्षात्कार कर पाते हैं । उन स्वरूपों को हमारे सामने शमशेर बहादुर सिंह ने अपनी इस कविता "उषा" में हमारे सम्मुख प्रस्तुत किया है।
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संत कबीर रचित "साखी" का सरल भावानुवाद Presentation By MAYA LOHANIBy maya lohani