१। क्या अच्छे कर्म करने से ज्ञान प्राप्त होता है?
२। अगर अच्छे कर्म करने पर ध्यान न दें तो क्या जीव बुरे कर्म नहीं करने लगेगा?
अज्ञान के वजह से मनुष्य को अहंकार है और वही उसकी मन , बुद्धि को अपवित्र किए हुए है। इसे केवल ज्ञान के अभ्यास से ही पवित्र किया जा सकता है।
विषयवासना से मन मलिन हो चुका है इसे केवल ब्रह्मविद्या से ठीक उसी तरह पवित्र किया जा सकता है जैसे कटक को पानी में डालने से पानी की अशुद्धियां दूर की जाती है। अतः इस कटक रुपी ब्रह्मविद्या को मन बुद्धि में डाल दे तो मन बुद्धि निर्मल हो जाएगी और चित शुद्ध हो जाएगा। यही एकमात्र साधन है स्वयं को जानने का और आत्मा से एकसार होने का।
इंसान जीवन के उस कच्चे तट पर बैठकर सुरक्षित महसूस करता है जो लगातार पानी में धंस रहा है । जीवन रूपी नदी का बहाव इतना तीव्र है कि वह कभी भी इस बहाव में डूब सकता है। समय की धारा पर कोई भी सुरक्षित नहीं है। फिर भी हम चिंतन नहीं करते।
प्रश्न यह है हमारा जीवन/ शरीर का जीवन क्या है?
- शरीर जन्म से पहले नहीं था
- शरीर मृत्यु के बाद नहीं होगा
- यह शरीर रुपी जीवन जो हमें यात्री के तौर पर मिला है ।इसे हम अपनी मंजिल समझने की भूल कर बैठते हैं।