Silent Wisdom

Atmabodha Verse 53


Listen Later

श्लोक 53:
मृत्यु के समय
* सारी उपाधियां अपनी अपनी ब्रह्मांडीय शक्तियों में समा जाती हैं।
*शरीर पंचधातु में विलीन हो जाता है ।
* पंचधातु ब्रह्मांडीय ऊर्जा में समा जाते हैं
*मन माया में समा जाता है।
*बुद्धि ब्रह्मांडीय चेतना में समा जाती है ।
* व्यक्तिगत प्राण ब्रह्मांडीय ऊर्जा में समा जाते हैं।!
केवल आत्मा ही अपने वास्तविक रूप में रह जाती है।
केवल योगी ही ऐसा है जो केवल स्वयं में ही विलीन होता है। क्योंकि विच्छेदन के बाद आगे विभाजन संभव नहीं है। और योगी पूरी तरह केवल आत्मन ही है। ठीक वैसे ही जैसे घड़ा टूटने पर केवल मिट्टी ही हो जाता है।
सिद्ध पुरुष ना जीते जी और ना मर कर उपाधियों से बंधे रहते हैं।
आम आदमी तो इच्छाएं से बांधा हुआ है। जो मरणोपरांत भी नहीं छूटती । यही कारण है कि जन्म मरण का चक्कर चलता ही रहता है।
अवचेतन मन/चित्त सब जन्मों की स्मृतियों का लेखा-जोखा समेटे हुए हैं। इन्हें मिटाया नहीं जा सकता । यही बेलगाम इच्छाएं जन्म मरण के चक्रव्यू का कारण हैं।
यही इच्छाएं हमारे अज्ञान का कारण है। जो अंतहीन हैं। इसीलिए इच्छाएं त्यागने में ही समझदारी है। यह सब आत्म ज्ञान के द्वारा ही संभव है। आत्म ज्ञान के द्वारा ही हम बंधन मुक्ति जैसी सर्वोत्तम स्थिति पा सकते हैं। फलस्वरूप,जन्म मरण से निकल सकते हैं।
योगी अपना अगला जन्म लोगों के प्रति सहानुभूति में लेता है । ताकि वह उनका उद्धार कर सके। जबकि वह स्वयं तो पुर्व जन्म में भी और अब इस जन्म में भी इच्छा मुक्त ही है।
श्लोक 53:
मृत्यु के समय
* सारी उपाधियां अपनी अपनी ब्रह्मांडीय शक्तियों में समा जाती हैं।
*शरीर पंचधातु में विलीन हो जाता है ।
* पंचधातु ब्रह्मांडीय ऊर्जा में समा जाते हैं
*मन माया में समा जाता है।
*बुद्धि ब्रह्मांडीय चेतना में समा जाती है ।
* व्यक्तिगत प्राण ब्रह्मांडीय ऊर्जा में समा जाते हैं।!
केवल आत्मा ही अपने वास्तविक रूप में रह जाती है।
केवल योगी ही ऐसा है जो केवल स्वयं में ही विलीन होता है। क्योंकि विच्छेदन के बाद आगे विभाजन संभव नहीं है। और योगी पूरी तरह केवल आत्मन ही है। ठीक वैसे ही जैसे घड़ा टूटने पर केवल मिट्टी ही हो जाता है।
सिद्ध पुरुष ना जीते जी और ना मर कर उपाधियों से बंधे रहते हैं।
आम आदमी तो इच्छाएं से बांधा हुआ है। जो मरणोपरांत भी नहीं छूटती । यही कारण है कि जन्म मरण का चक्कर चलता ही रहता है।
अवचेतन मन/चित्त सब जन्मों की स्मृतियों का लेखा-जोखा समेटे हुए हैं। इन्हें मिटाया नहीं जा सकता । यही बेलगाम इच्छाएं जन्म मरण के चक्रव्यू का कारण हैं।
यही इच्छाएं हमारे अज्ञान का कारण है। जो अंतहीन हैं। इसीलिए इच्छाएं त्यागने में ही समझदारी है। यह सब आत्म ज्ञान के द्वारा ही संभव है। आत्म ज्ञान के द्वारा ही हम बंधन मुक्ति जैसी सर्वोत्तम स्थिति पा सकते हैं। फलस्वरूप,जन्म मरण से निकल सकते हैं।
योगी अपना अगला जन्म लोगों के प्रति सहानुभूति में लेता है । ताकि वह उनका उद्धार कर सके। जबकि वह स्वयं तो पुर्व जन्म में भी और अब इस जन्म में भी इच्छा मुक्त ही है।
...more
View all episodesView all episodes
Download on the App Store

Silent WisdomBy Muni


More shows like Silent Wisdom

View all
Guided Meditation & Spirituality I Dhyanse by Dhyanse Meditation

Guided Meditation & Spirituality I Dhyanse

15 Listeners