श्लोक 56:
ब्रह्मन हर स्थिति में ब्रह्मन ही है। शंकराचार्य जी कहते हैं कि इस ब्रह्मन को जानों - जो
•चैतन्य
•आनंदमय •अस्तित्वात्मक •असीम
• अद्वैत और •एकमात्र सत्य है ।
जबकि संसार अस्तित्वहीन है।
सारे योगीगण -चाहे वह कहीं भी रहते हो या किसी भी धर्म, जाति या रंग के हो- सबका एक ही सत्य है और वही परम सत्य है ।
ज्ञान आने के पश्चात - अब, आगे पाने के लिए शेष कुछ नहीं रह जाता । संसार में जो कुछ नज़र आता है - वह योगी के लिए केवल भ्रम है।
ज्ञान केवल हमें ज्ञान ही प्रदान नहीं करता ... बल्कि हमारे सारे भ्रम और अज्ञान का नाश भी करता है ।
इस अज्ञानता के हटते ही ज्ञान स्वयं ही स्पष्ट हो जाता है। भ्रम के हटते ही हमारा अस्तित्व समक्ष होता है । क्षेत्र को जाने बिना क्षेत्रज्ञ- नहीं जाना जा सकता ।राम को जाने बिना ....राम की पूजा करना व्यर्थ है।
तुलसीदास जी कहते हैं कि जब जीवा को अपने (जीव ) तत्व का ज्ञान हो जाता है ... तब ईश्वर स्वयं ही मिल जाता है ।परंतु जब मन ईश्वर को ढूंढने चाहते हैं...तब मन संसार में उलझ के रह जाता है। क्योंकि मन केवल संसार को ही जानता है ।वह यह नहीं जानता कि ईश्वर कौन और कहां है। कोई
•राम को /कृष्ण को/देवी को या शिवा को मानते हैं । कोई निराकार को भी मानते हैं ।उनके लिए भगवान आकाश में रहते हैं। परंतु सच तो यह है आकाश पंचतत्व का ही हिस्सा है । यह सब पंचभूत जड़ मात्र है ।
बुध धर्म के अनुसार भगवान कुछ भी नहीं है । वह शून्यता पर विश्वास रखते हैं। इच्छाएं ही हमारे बार-बार जन्म लेने का कारण है । इसलिए,जो इच्छा त्याग कर, आठ गुना पथ पर दृढ़ता से चलता है... उसे ही निर्वाण की प्राप्ति होती है।
जैन मत के अनुसार भगवान जैसा कुछ नहीं है ।सब आत्मा- अनआत्मा /जीव- अजीव का ही खेल है ।आत्मा शरीर में रहती है.... सारी अशुद्धियां शरीर/मन/ बुद्धि में घुस चुकी है। इसलिए- •हिंसा •चोरी •जमाखोरी जैसे विचारों को त्यागकर ..... और
तमाम अशुद्धियों को कठोर तपस्या में जलाकर ......
ही शुद्ध हुआ जा सकता है। इस तरह पूर्णता शुद्ध व्यक्ति को तीर्थकर या महावीर कहते हैं।
यह मत सांख्य मत से कुछ-कुछ मिलता है। जिस का मानना है कि यह सारा खेल
*प्रकृति (माया)
*पुरूष (ब्रह्म)
*जीव
का है…।
यदि कोई साधक अज्ञानता से निकलने में इच्छुक है ... तो उसे कुछ प्रश्नों पर गहराई से सोचना होगा:
*मैं कौन हूं?
*आत्मा कौन है?
*भगवान कौन है?
*जीवा कौन है?
*ईश्वर कौन है?
ज्ञानपूर्ण बातों पर मनन किए बिना अज्ञानता नहीं मिट सकती।
हम मात्र विश्वास के लिए धर्म का चुनाव नहीं करते। बल्कि ,यह वो सिद्धान्त हैं ...जो वेद और उपनिषद जैसे ग्रन्थों द्वारा प्रमाणित हैं। इसके अतिरिक्त, यह ऋषियों-मुनियों का सीधा अनुभव
है । यही नहीं ,यह
प्रयोगों द्वारा सिद्ध भी है।
यह भी ज़ाहिर सी बात है कि ऋषिगण गलत का समर्थन कभी नहीं करेंगे।
Verse 56
Brahman abides in all the directions. Shankaracharya says, realise this Brahman - which is ever conscious, ever blissful, absolute existence ; It is infinite and eternal. Brahman is non-dual, there is no other reality.
Irrespective of form, race, caste, geographical location or the era they were born in - all enlightened beings, speak of the one Truth, the absolute singular reality.
Once attained, nothing else remains to be attained. To an enlightened being the world that is visible is no more than an illusion.
Knowledge not only gives but it also takes away the illusions and delusions. Only when the untruth is discarded, the Truth is attained. Without discarding the illusory, one cannot know the substratum. Without knowing the Ksetra. (field-of- knowable) one cannot know the ksetragya.
It is futile to have devotion towards Shri Ram without knowing his true essence.