
Sign up to save your podcasts
Or
कत्थक: कथक नृत्य किसी एक राज्य से जुड़ा नहीं है और उत्तर भारत के कई राज्यों में देखा जा सकता है।
कत्थक शब्द में छुपा है शब्द कथा, जिसका मतलब है कहानी, तो ऐसा कहा जा सकता है की कत्थक का जन्म कहानी सुनाने की कला से जुड़ा है। इसी कला को और प्रभावशाली बनाने के लिए विभिन्न भाव भंगिमाओं का इस्तेमाल किया जाने लगा और धीरे-धीरे इसमें ताल, संगीत और नृत्य जुड़ गया। इसकी जड़ें रासलीला में पाई जाती हैं जहाँ कृष्ण लीला और भगवत पुराण के अध्यायों का नृत्य नाटिका के रूप में मंचन किया जाता था। भक्ति से जुडी इस कला का अपना इतिहास है।
भक्ति काल में पनपी इस नृत्य कला को मुगलों ने भी खूब प्रोत्साहित किया परन्तु इसमें से भक्ति की जगह कामुकता ने ले ली और मंदिरों से निकलकर यह नृत्य दरबारों तक पहुँच गया। कत्थक के इस बदले रूप और इससे जुड़े कलाकरों को तुच्छ और बहिष्कृत माना जाने लगा। मुगलों के पतन के साथ कत्थक भी गुम होने लगा। अठारहवीं शताब्दी में अवध के अंतिम नवाब, वाजिद अली शाह ने इस नृत्य में एक नई जान छिड़की। वे खुद भी कत्थक किया करते थे। उन्होंने कत्थक नर्तकों के साथ नृत्य भी किया और उन्हें समाज में सम्मान दिलाया। वहीं से कत्थक के लखनऊ घराने का जन्म हुआ।
कत्थक में मुख्य रूप से पखवाज, तबला, हारमोनियम, सारंगी और करताल जैसे वाद्य यंत्रो का प्रयोग होता है। कत्थक की बात हो और पंडित बिरजू महाराजा की बात न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? सितारा देवी, शोवना नारायण, मालबिका मित्रा, कुमुदिनी लखिआ और मनीषा गुलयानी कत्थक के वो बड़े नाम हैं जिनके बिना कत्थक की कथा अधूरी ही रहेगी।
कला की बात हो रही हो तो हम अपनी फिल्मों को कैसे भूल सकते हैं? हमारी फिल्में नृत्य और संगीत के बिना अधूरी हैं और समय समय पर फिल्मों में शास्त्रीय नृत्य की छाप मिल ही जाती हैं। क्या आपको मुगलेआज़म का वो गाना याद है, "प्यार किया तो डरना क्या", 'उमराओ जान में रेखा जी के द्वारा किया गया नृत्य, देवदास के दो गाने और दोनों में ही कत्थक के दो रूप, 'हमपे ये किसने हरा रंग डाला' और 'काहे छेड़ छेड़ मोहे, जिसके नृत्य को स्वयं पंडित बिरजू महाराज ने कोरिओग्राफ किया था। पंडित बिरजू महाराज ने ही तमिल फिल्म विश्वरूपम के 'उन्नाई कानाधु नान" तथा बाजिराओ मस्तानी के अरिजीत सिंह द्वारा गाए सब के मन को मोह लेने वाले गाने 'मोहे रंग दो लाल को भी कोरिओग्राफ किया था। तो ये थी कृष्ण की रासलीला से शुरू हुई इस शास्त्रीय नृत्य कला की कहानी।
कत्थक: कथक नृत्य किसी एक राज्य से जुड़ा नहीं है और उत्तर भारत के कई राज्यों में देखा जा सकता है।
कत्थक शब्द में छुपा है शब्द कथा, जिसका मतलब है कहानी, तो ऐसा कहा जा सकता है की कत्थक का जन्म कहानी सुनाने की कला से जुड़ा है। इसी कला को और प्रभावशाली बनाने के लिए विभिन्न भाव भंगिमाओं का इस्तेमाल किया जाने लगा और धीरे-धीरे इसमें ताल, संगीत और नृत्य जुड़ गया। इसकी जड़ें रासलीला में पाई जाती हैं जहाँ कृष्ण लीला और भगवत पुराण के अध्यायों का नृत्य नाटिका के रूप में मंचन किया जाता था। भक्ति से जुडी इस कला का अपना इतिहास है।
भक्ति काल में पनपी इस नृत्य कला को मुगलों ने भी खूब प्रोत्साहित किया परन्तु इसमें से भक्ति की जगह कामुकता ने ले ली और मंदिरों से निकलकर यह नृत्य दरबारों तक पहुँच गया। कत्थक के इस बदले रूप और इससे जुड़े कलाकरों को तुच्छ और बहिष्कृत माना जाने लगा। मुगलों के पतन के साथ कत्थक भी गुम होने लगा। अठारहवीं शताब्दी में अवध के अंतिम नवाब, वाजिद अली शाह ने इस नृत्य में एक नई जान छिड़की। वे खुद भी कत्थक किया करते थे। उन्होंने कत्थक नर्तकों के साथ नृत्य भी किया और उन्हें समाज में सम्मान दिलाया। वहीं से कत्थक के लखनऊ घराने का जन्म हुआ।
कत्थक में मुख्य रूप से पखवाज, तबला, हारमोनियम, सारंगी और करताल जैसे वाद्य यंत्रो का प्रयोग होता है। कत्थक की बात हो और पंडित बिरजू महाराजा की बात न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? सितारा देवी, शोवना नारायण, मालबिका मित्रा, कुमुदिनी लखिआ और मनीषा गुलयानी कत्थक के वो बड़े नाम हैं जिनके बिना कत्थक की कथा अधूरी ही रहेगी।
कला की बात हो रही हो तो हम अपनी फिल्मों को कैसे भूल सकते हैं? हमारी फिल्में नृत्य और संगीत के बिना अधूरी हैं और समय समय पर फिल्मों में शास्त्रीय नृत्य की छाप मिल ही जाती हैं। क्या आपको मुगलेआज़म का वो गाना याद है, "प्यार किया तो डरना क्या", 'उमराओ जान में रेखा जी के द्वारा किया गया नृत्य, देवदास के दो गाने और दोनों में ही कत्थक के दो रूप, 'हमपे ये किसने हरा रंग डाला' और 'काहे छेड़ छेड़ मोहे, जिसके नृत्य को स्वयं पंडित बिरजू महाराज ने कोरिओग्राफ किया था। पंडित बिरजू महाराज ने ही तमिल फिल्म विश्वरूपम के 'उन्नाई कानाधु नान" तथा बाजिराओ मस्तानी के अरिजीत सिंह द्वारा गाए सब के मन को मोह लेने वाले गाने 'मोहे रंग दो लाल को भी कोरिओग्राफ किया था। तो ये थी कृष्ण की रासलीला से शुरू हुई इस शास्त्रीय नृत्य कला की कहानी।