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भरतनाट्यम:
भरतनाट्यम भारत की सबसे पुरानी शास्त्रीय नृत्य परंपरा है जिसमें नृत्यांगनाएं वेदों, पुराणों,रामायण, महाभारत और खासकर शिव पुराण की कथाओं को आकर्षक भाव भंगिमाओं और मुद्राओं के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं। यह तमिलनाड़ू का राजकीय नृत्य है। भरतनाट्यम को देवदासियों से जोड़ा जाता है पर कई पुरातत्व वैज्ञानिकों ने इसे उससे बहुत पहले की नृत्य कला बताया है। भरतनाट्यम को मंदिरों में ही किया जाता था। कई पौराणिक मंदिरों में बनी प्रतिमाएं भरतनाट्यम की मुद्राओं से मिलती हैं जैसे सातवीं शताब्दी में बनी बादामी के गुफा मंदिरों में मिली नटराज की मूर्ति। बीसवीं शताब्दी में यह नृत्य मंदिरों से निकलकर भारत के अन्य राज्यों और साथ ही साथ विदेशों तक भी पहुँच गया। स्वतंत्रता के उपरान्त इस नृत्य को खूब ख्याति मिली। भरतनाट्यम के भारत के बैले के रूप में जाना जाने लगा। भारत के बाहर यह नृत्य कला अमेरिका, यूरोप, कैनेडा, खाड़ी देशों, बांग्लादेश और सिंगापूर में भी सिखाया जाता है। विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए यह और अन्य शास्त्रीय नृत्य कलाएं अपनी संस्कृति से जुड़े रहने एक जरिया है और आपसी मेल-मिलाप का बहाना भी ।
यह नृत्य कला लगभग दो हज़ार साल पुरानी है। दूसरी शताब्दी से भरतनाट्यम का वर्णन प्राचीन तमिल महाकाव्य सिलप्पाटिकरम में पाया जा सकता है, जबकि 6वीं से 9वीं शताब्दी के मंदिरों की मूर्तियाँ बताती हैं कि यह पहली सहस्राब्दी के मध्य तक एक अत्यधिक परिष्कृत परिष्कृत यानी sophisticated प्रदर्शन कला के रूप में स्थापित हो चूका था।
उन्नीसवीं शताब्दी तक यह नृत्य मंदिरों तक ही सीमित था। बड़ी अजीब सी बात है की आधुनिक माने जाने वाले अंग्रेज़ों ने अपने राज में भारत के कई शास्त्रीय नृत्यों को वेश्यावृत्ति से जोड़ कर उनका मख़ौल उड़ाया और १९१० में भरतनाट्यम पर पूर्ण रूप से रोक लका दी जिससे धीरे-धीरे ये कलाएं मरने लगीं। पर लोगों ने इसका जी जान से विरोध किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अपनी कला और संस्कृति को अंग्रेज़ों के विरुद्ध फिर से अभिव्यक्ति दी। भरतनाट्यम को पहले सादीरट्टम, परथैयार अट्टम और ठेवारट्टम भी कहा जाता था। सन १९३२ में ई कृष्णा अय्यर और रुक्मिणी देवी ने मद्रास संगीत अकादमी के सामने इस प्राचीन नृत्य कला को इसका खोया सम्मान वापस दिलाने के लिए इसका नाम बदलकर भरतनाट्यम रखने का प्रस्ताव रखा। भरतनाट्यम एक संयुक्त शब्द है जो तीन सांकेतिक वर्णों और एक शब्द की संधि से बना है। भ - भावों के लिए, र- राग के लिए, तम - ताल के लिए और नाट्यम संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ नृत्य है।
भरतनाट्यम में मृदंग, वायलिन, वीणा, बांसुरी और करताल जैसे वाद्यों का प्रयोग होता है। रुक्मिणी देवी, पद्मा सुब्रमणियम, अलरमेल वाली, यामिनी कृष्णमूर्ति, अनीता रत्नम, मल्लिका साराभाई, मृणालिनी साराभाई और मिनाक्षी सुंदरम पिल्लई भरतनाट्यम से जुड़े जाने माने नाम हैं।
फिल्म जगत से जुड़ी कई अभिनेत्रियों ने अपनी शुरुवात एक नृत्यांगना की तरह ही की थी जिनमें बीते दिनों की अभिनेत्रियां जैसे, ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी, वैजन्तीमाला, श्रीदेवी, जयाप्रदा और बहुत सी तमिल और तेलुगु फिल्म जगत से जुड़ी अभिनेत्रियां भरतनाट्यम नृत्य कला में निपुण थीं। आजकल की अभिनेत्रियों में भी कई अभिनेत्रियों ने शास्त्रीय नृत्य सीखा है जिनमें ऐश्वर्या राय बच्चन और तापसी पुन्नू भरतनाट्यम नृत्य से जुड़ी हैं।
भरतनाट्यम:
भरतनाट्यम भारत की सबसे पुरानी शास्त्रीय नृत्य परंपरा है जिसमें नृत्यांगनाएं वेदों, पुराणों,रामायण, महाभारत और खासकर शिव पुराण की कथाओं को आकर्षक भाव भंगिमाओं और मुद्राओं के माध्यम से प्रदर्शित करते हैं। यह तमिलनाड़ू का राजकीय नृत्य है। भरतनाट्यम को देवदासियों से जोड़ा जाता है पर कई पुरातत्व वैज्ञानिकों ने इसे उससे बहुत पहले की नृत्य कला बताया है। भरतनाट्यम को मंदिरों में ही किया जाता था। कई पौराणिक मंदिरों में बनी प्रतिमाएं भरतनाट्यम की मुद्राओं से मिलती हैं जैसे सातवीं शताब्दी में बनी बादामी के गुफा मंदिरों में मिली नटराज की मूर्ति। बीसवीं शताब्दी में यह नृत्य मंदिरों से निकलकर भारत के अन्य राज्यों और साथ ही साथ विदेशों तक भी पहुँच गया। स्वतंत्रता के उपरान्त इस नृत्य को खूब ख्याति मिली। भरतनाट्यम के भारत के बैले के रूप में जाना जाने लगा। भारत के बाहर यह नृत्य कला अमेरिका, यूरोप, कैनेडा, खाड़ी देशों, बांग्लादेश और सिंगापूर में भी सिखाया जाता है। विदेशों में रह रहे भारतीयों के लिए यह और अन्य शास्त्रीय नृत्य कलाएं अपनी संस्कृति से जुड़े रहने एक जरिया है और आपसी मेल-मिलाप का बहाना भी ।
यह नृत्य कला लगभग दो हज़ार साल पुरानी है। दूसरी शताब्दी से भरतनाट्यम का वर्णन प्राचीन तमिल महाकाव्य सिलप्पाटिकरम में पाया जा सकता है, जबकि 6वीं से 9वीं शताब्दी के मंदिरों की मूर्तियाँ बताती हैं कि यह पहली सहस्राब्दी के मध्य तक एक अत्यधिक परिष्कृत परिष्कृत यानी sophisticated प्रदर्शन कला के रूप में स्थापित हो चूका था।
उन्नीसवीं शताब्दी तक यह नृत्य मंदिरों तक ही सीमित था। बड़ी अजीब सी बात है की आधुनिक माने जाने वाले अंग्रेज़ों ने अपने राज में भारत के कई शास्त्रीय नृत्यों को वेश्यावृत्ति से जोड़ कर उनका मख़ौल उड़ाया और १९१० में भरतनाट्यम पर पूर्ण रूप से रोक लका दी जिससे धीरे-धीरे ये कलाएं मरने लगीं। पर लोगों ने इसका जी जान से विरोध किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय अपनी कला और संस्कृति को अंग्रेज़ों के विरुद्ध फिर से अभिव्यक्ति दी। भरतनाट्यम को पहले सादीरट्टम, परथैयार अट्टम और ठेवारट्टम भी कहा जाता था। सन १९३२ में ई कृष्णा अय्यर और रुक्मिणी देवी ने मद्रास संगीत अकादमी के सामने इस प्राचीन नृत्य कला को इसका खोया सम्मान वापस दिलाने के लिए इसका नाम बदलकर भरतनाट्यम रखने का प्रस्ताव रखा। भरतनाट्यम एक संयुक्त शब्द है जो तीन सांकेतिक वर्णों और एक शब्द की संधि से बना है। भ - भावों के लिए, र- राग के लिए, तम - ताल के लिए और नाट्यम संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ नृत्य है।
भरतनाट्यम में मृदंग, वायलिन, वीणा, बांसुरी और करताल जैसे वाद्यों का प्रयोग होता है। रुक्मिणी देवी, पद्मा सुब्रमणियम, अलरमेल वाली, यामिनी कृष्णमूर्ति, अनीता रत्नम, मल्लिका साराभाई, मृणालिनी साराभाई और मिनाक्षी सुंदरम पिल्लई भरतनाट्यम से जुड़े जाने माने नाम हैं।
फिल्म जगत से जुड़ी कई अभिनेत्रियों ने अपनी शुरुवात एक नृत्यांगना की तरह ही की थी जिनमें बीते दिनों की अभिनेत्रियां जैसे, ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी, वैजन्तीमाला, श्रीदेवी, जयाप्रदा और बहुत सी तमिल और तेलुगु फिल्म जगत से जुड़ी अभिनेत्रियां भरतनाट्यम नृत्य कला में निपुण थीं। आजकल की अभिनेत्रियों में भी कई अभिनेत्रियों ने शास्त्रीय नृत्य सीखा है जिनमें ऐश्वर्या राय बच्चन और तापसी पुन्नू भरतनाट्यम नृत्य से जुड़ी हैं।