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भारत के शास्त्रीय नृत्य - भाग-३ (कथकली) | Classical Dance forms of India – Part - 3 (Kathakali)


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कथकली :

कथकली केरल राज्य की एक प्राचीन नृत्य कला है जिसे इसकी भव्य वेशभूषा, अद्भुत श्रृंगार और मुखौटों के लिए जाना जाता है। कथकली का अर्थ है कथा का नाट्य रूपांतरण। कथ का अर्थ है कहानी, और कली का मतलब है प्रदर्शन। कथकली का जन्म 17वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में हुआ था। कथकली केवल पुरुषों द्वारा किया जाता था और स्त्रियों के पात्रों की प्रस्तुति भी पुरुषों द्वारा ही की जाती है। वर्तमान समय में स्त्रियों को भी इस नृत्य कला से जोड़ लिया गया है। यह नृत्य अच्छाई और बुराई के बीच युगों-युगों से चल रही लड़ाई का प्रतीक है। समय के अनुसार कथकली की वेशभूषा, संगीत, वादन, अभिनय-रीति, अनुष्ठान आदि सभी क्षेत्र परिवर्तित हुए हैं। राजमहलों तथा ब्राह्मणों के संरक्षण में यह नृत्य नाट्य कला विकास की सीढ़ियां चढ़ती रहीं।

कथकली बस अपनी भव्यता के लिए ही नहीं बल्कि अपनी विभिन्न हस्त मुद्राओं और हर एक भाव को बस आँखों से व्यक्त करने की अद्भुत कला के लिए भी प्रसिद्ध है। कथकली में रामायण, महाभारत व अन्य पुराणों से जुड़ी कथाओं का नाट्य मंचन किया जाता है। भारी भरकम वस्त्र और मुकुट पहनने से पहले हर कलाकार का चेहरा उसके पात्र के निश्चित रंग से रंग दिया जाता है। हर पात्र के लिए एक निश्चित वेशभूषा है जिससे दर्शकों को पात्रों को पहचानने में आसानी हो। अन्य नृत्यों के मुकाबले कथकली में नृत्य के साथ साथ अभिनय भी बहुत ज़रूरी है और इसीलिए यह भारत का सबसे कठिन शास्त्रीय नृत्य माना जाता है।

वेषम या मेक-अप पांच प्रकार के होते हैं - पच्चा, कत्ती, ताडी, करि और मिनुक्क। कथकली की भव्यता और शान इसकी सज्जा और श्रृंगार के कारण होती है जिसका एक महत्वपूर्ण अंग है किरीटम (सिर के ऊपर की विशाल सज्जा या मुकुट) और कंचुकम (बड़े आकार का अंगवस्त्र/जैकेट) और एक लंबा लहंगा जिसे कुशन की मोटी गद्दी के ऊपर पहना जाता है।

१: पच्चा वेषम या हरा मेक-अप शालीन नायक प्रस्तुत करता है।

२: कत्ती या चाक़ू वेषम खलनायक का चरित्र पेश करता है।

३: ताडी (दाढ़ी) तीन प्रकार की दाढ़ी या ताडी वेषम होते हैं। हनुमान जैसे अतिमानवीय वानरों के लिए वेल्ला ताडी या सफेद दाढ़ी और चुवन्ना ताडी या लाल दाढ़ी दुष्ट चरित्रों के लिए होती है। करुत्ता ताडी या काली दाढ़ी शिकारी के लिए होती है।

४: करि (काला) करि वेषम राक्षसियों के लिए प्रयुक्त होता है।

५: मीनुक्क (सज्जा) “मीनुक्क वेषम” स्त्री पात्रों और संतों के लिए प्रयुक्त होते हैं।

मुद्रा एक शैलीगत संकेत भाषा है जिसका उपयोग किसी विचार, परिस्थिति या अवस्था की प्रस्तुति के लिए किया जाता है। कथकली कलाकार मुद्रा के जरिए अपने विचारों को व्यक्त करता है। इसके लिए कलाकार एक सुव्यवस्थित संकेत भाषा का उपयोग करते हैं जो हाथ की मुद्राओं की व्याख्या करने वाले ग्रंथ हस्तलक्षण दीपिका पर आधारित है।

कथकली के वाद्यवृंद दो प्रकार के ढोलों से निर्मित होते हैं - मद्धलम और चेण्डा; चेंगिला जो पीतल का घंटा (घड़ियाल) होता है और इलत्तालम या करताल (मजीरा)। कथकली के कुछ माने हुए कलाकार हैं कलामंडलम गोपी, पद्मनाभम नायर, रमनकुट्टी नायर और कुमारन नायर।

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Kyaa aap jante hain? / Do you know?By Asha Gaur