भजन - कीर्तन - आरती

भजन: अस कछु समुझि परत रघुराया


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Bhajan: As kachhu samaujhi parat raghuraya
अस कछु समुझि परत रघुराया ! 
बिनु तव कृपा दयालु ! दास-हित ! मोह न छूटै माया ॥ १ ॥ 
जैसे कोइ इक दीन दुखित अति असन-हीन दुख पावै । 
चित्र कलपतरु कामधेनु गृह लिखे न बिपति नसावै ॥ ३ ॥ 
जब लगि नहिं निज हृदि प्रकास, अरु बिषय-आस मनमाहीं । 
तुलसिदास तब लगि जग-जोनि भ्रमत सपनेहुँ सुख नाहीं ॥ ५ ॥
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भजन - कीर्तन - आरतीBy Shri Ram Parivar

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