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(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है !
चलो एक बार फिर से हम नयी शुरुआत करते हैं
बीती हुई बातों पर फिर ना हम कोई बात करते हैं
अस्सी का वो घाट जहां से BHU कि बातें करते है
वापस फिर से मिलों ना अस्सी नयी कहानी करते हैं
जाड़ों कि उन रातों में जब चाय पर निकला करते थे
आते थे लक्सा पर अक्सर चायोस में जाया करते थे
चाय पीने के नाम से घंटों चायोस में बिताया करते थे
चलो एक बार फिर से हम नयी शुरुआत करते हैं
बीती हुई बातों पर फिर ना हम कोई बात करते हैं
शयन आरती पर भोले का दर्शन हम पाया करते थे
आरती से पहले हम अक्सर भष्म लगाया करते थे
शकुन को लेकर फिर हम साथ ही आया करते थे
फिर से वही घाट किनारे पहुंच हम जाया करते थे
अस्सी घाट पर अक्सर हम गप्पे लड़वाया करते थे
उन गप्पो में अक्सर लंबा व्यक्त गंवाया करते थे
चलो एक बार फिर से हम नयी शुरुआत करते हैं
बीती हुई बातों पर फिर ना हम कोई बात करते हैं
By Sharad Dubey(अल्लहड़ बनारसी और रमती बंजारन) जिसके (लेखक शरद दुबे) और (वक्ता RJ रविंद्र सिंह) है !
चलो एक बार फिर से हम नयी शुरुआत करते हैं
बीती हुई बातों पर फिर ना हम कोई बात करते हैं
अस्सी का वो घाट जहां से BHU कि बातें करते है
वापस फिर से मिलों ना अस्सी नयी कहानी करते हैं
जाड़ों कि उन रातों में जब चाय पर निकला करते थे
आते थे लक्सा पर अक्सर चायोस में जाया करते थे
चाय पीने के नाम से घंटों चायोस में बिताया करते थे
चलो एक बार फिर से हम नयी शुरुआत करते हैं
बीती हुई बातों पर फिर ना हम कोई बात करते हैं
शयन आरती पर भोले का दर्शन हम पाया करते थे
आरती से पहले हम अक्सर भष्म लगाया करते थे
शकुन को लेकर फिर हम साथ ही आया करते थे
फिर से वही घाट किनारे पहुंच हम जाया करते थे
अस्सी घाट पर अक्सर हम गप्पे लड़वाया करते थे
उन गप्पो में अक्सर लंबा व्यक्त गंवाया करते थे
चलो एक बार फिर से हम नयी शुरुआत करते हैं
बीती हुई बातों पर फिर ना हम कोई बात करते हैं