तीर्थ राज प्रयाग में कल्पवास में अथवा कुंभ पर्व के अवसर पर वहां तीर्थ में स्नान/निवास करते हुए इस स्तोत्र का पाठ अवश्य करना चाहिए। इसके अतिरिक्त विश्व में कहीं भी रहते हुए भगवती त्रिवेणी, लक्ष्मी और भगवान माधव नारायण का चिंतन ध्यान करते हुए इस स्तोत्र का पाठ त्रयतापों अर्थात् तीन तरह के कष्टों से मुक्त करता है।
त्रिवेणी स्तोत्र- तीर्थराज प्रयाग में जहाँ गङ्गा यमुना सरस्वती मिलती हैं उसे त्रिवेणी कहते हैं। त्रिवेणी का वर्णन वेदों में भी आता है। स्त्रियों का सौभाग्य भी वेणी में ही होता है। चोटी को तीन लट पृथक करके गूँथते हैं। पहले तो वे तीनों अलग-अलग दिखती हैं किंतु गुँथने पर एक छिप जाती है दो ही दिखायी देती हैं। इसी प्रकार गङ्गा, यमुना, सरस्वती तीनों मिलने पर सरस्वती गुप्त हो जाती है, गङ्गा-यमुना की दो धारा ही दिखायी देती हैं।
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