अक्सर लोग बोलते हैं कि भगवान या परमात्मा कहाँ हैं, मुझे दिखाओ फिर मैं मानूंगा। समझने वाली बात है कि परमात्मा को जानने का मार्ग अलग है। यहाँ तर्क, बुद्धि, या मन काम नहीं करता। ह्रदय और प्रेम का मार्ग परमात्मा की ओर जाता है पर इस मार्ग पर चलना मुश्किल जान पड़ता है। आखिर परमात्मा का मार्ग मुश्किल क्यों लगता है? क्या करें कि परमात्मा के दर्शन हमें हर जगह हो, हम परमात्मा में ही जीने लगें और फिर किसी प्रमाण की आवश्यकता न पड़े?