गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं, वचनों में मैं एक अक्षर ओंकार हूँ। तीन मधुर ध्वनियों से बना हुआ ये शब्द, ओंकार अपने आप में एक अद्भुत शब्द है। जो स्थान साइंस में E=MC2 का है, जिस पर विज्ञान के कई नियम आधारित हैं, वही स्थान भारतीय प्रज्ञा में इस एक शब्द का है। ये सभी शास्त्रों का निचोड़ है। एक सच्चा साधक संसार से ओंकार की यात्रा ही करता है और इसके द्वारा वो अपने भीतर एक स्वर्ग बना लेता है। कोई भी जप या यज्ञ इसके बगैर पूरा नहीं होता। आखिर क्यों खास है इस एक अक्षर का अस्तित्व?