समस्त सुख सुविधाओं और अत्यधिक मात्रा में धन का होना, सुख शांति की गारंटी नहीं है। एक सीमा के बाद पैसा हमारी सुख सुविधाओं और आराम में कोई खास बढ़ोतरी भी नहीं करता। जब आप काफी पैसे कमा लेते हैं, तो आपको दिख जाता है कि एक लिमिट के बाद पैसा कमाते ही रहना निरर्थक है... पैसे की निरर्थकता दिख जाती है। लेकिन ये निरर्थकता दिखती पैसे कमाने के बाद ही है। मतलब इस वास्तविकता को जिया तो जा सकता हैं... लेकिन समझना मुश्किल है।
हालांकि कबीर, नानक, रैदास, दास मलूका आदि ऐसे उदाहरण़ भी हैं, जिन्हें गरीबी में भी ये दिख गया कि पैसे की कोई खास कीमत नहीं है... पर ये चंद लोग अपवाद स्वरूप हैं। आमतौर पर एक हद तक की सुख सुविधाएं अगर ना हों, तो इंसान उससे आगे सोच भी नहीं पाता। लेकिन इस विश्व की सारी सुविधाएं उपलब्ध होने के बाद भी सुख शांति की कोई गांरटी नहीं है... इसलिए हमारे पास कितने भी पैसे आ जाएँ, फिर भी हमें जरूरत है कि हम इमोशनली लिटरेट हों।
Team Shreetara