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महाराष्ट्र में गौ मांस बेचना या रखना अब गैर क़ानूनी करार कर दिया गया है। जीवन के किन-किन दायरों को हम क़ानून के हवाले करना चाहते हैं? आखिर हम क्या खातें हैं और क्या पहनते है और वो भी अपने घर में इससे देश और राष्ट्र का क्या लेना देना? क़ानून केवल उन चीज़ों तक ही सीमित हो जहाँ स्वार्थ टकरायें या न्यूनतम व्यवस्था की आवयश्कता हो। जब हम जीवन को अपने ढंग से जी सकें और स्वायत्तता हो अपने जीवन सवारने की तब हम वाकई स्वंतत्र होंगे – चाहे गौ मांस खा कर या नित्य गौ ग्रास अर्पण कर।
महाराष्ट्र में गौ मांस बेचना या रखना अब गैर क़ानूनी करार कर दिया गया है। जीवन के किन-किन दायरों को हम क़ानून के हवाले करना चाहते हैं? आखिर हम क्या खातें हैं और क्या पहनते है और वो भी अपने घर में इससे देश और राष्ट्र का क्या लेना देना? क़ानून केवल उन चीज़ों तक ही सीमित हो जहाँ स्वार्थ टकरायें या न्यूनतम व्यवस्था की आवयश्कता हो। जब हम जीवन को अपने ढंग से जी सकें और स्वायत्तता हो अपने जीवन सवारने की तब हम वाकई स्वंतत्र होंगे – चाहे गौ मांस खा कर या नित्य गौ ग्रास अर्पण कर।