है न ये बड़े हैरत की बात है कि जो संस्कार एक पीड़िता को घरेलू हिंसा के लिए एक बड़ा ही आदर्श शिकार (Soft Target) बनाते हैं, वो पीड़िता को उसके जन्म का परिवार ही देता है। या, यूँ कह लीजिये कि पीड़िता की नियति को अधिकांशतः उसके माता पिता ही तय कर देते हैं उसे ये सिखा कर कि कुछ ऊंच-नीच हो तो संभाल लेना, दामाद जी को पलटकर ज़वाब देने की ज़रूरत नहीं है, मायके भागकर मत आना चाहे जो भी हो जाए, वही तुम्हारा घर है और चिर परिचित भारतीय संस्कार कि बेटी डोली में बैठ मायके से विदा होती है, और ससुराल से सिर्फ़ उसकी अर्थी ही निकालनी चाहिए। Plus , माएँ अपनी बेटियों को भलीभांति ये सीखा देतीं हैं कि वहां की Tension यहाँ मत बताना, तेरे पापा जी को Tension हो जाएगा। पति ही अब तेरा परमेश्वर है वगैरह, वगैरह ...
अब पीड़ित करे भी तो क्या करे ... शायद, अत्याचारी की हर गाली, हर थप्पड़ में उसके अपने प्रति प्यार की गहराई को महसूस करे ....
#alwaysvikas