घरेलू हिंसा के प्रति जागरूकता

घरेलू हिंसा में पीड़िता ही संस्कारी क्यों बनी रहे ? by #alwaysvikas


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क्या आपको नहीं लगता दोस्तों कि हमारे पुरुष प्रधान समाज में संस्कारों को निभाने का ठेका ज़्यादातर स्त्रियों के हिस्से आता है ? 


क्या उसके अपने रक्त सम्बन्धी ही उसे डरपोक बनकर जीना, ग़लत को चुनौती ना देना, हर अपमान हर भद्दी से गाली को चुपचाप बर्दाश्त कर लेना, हर थप्पड़ में प्यार को महसूस करना, या यौन हिंसा में ही चरम सुख की अनुभूति ले लेना, या आर्थिक रूप से ग़ुलाम होना, अपना जीवन सिर्फ़ औरों के लिए पूर्णतः समर्पित कर देना,  इत्यादि नहीं सिखाते हैं ? 


क्या उसका कोई अपना वज़ूद भी रह जाता है ? या, वो महज़ अत्याचारी की छाया बनकर जीती है और आजीवन आपकी (अर्थात, माता पिता) व अपने ख़ुद के परिवार की इज़्ज़त बचाती रह जाती है ...  उसका ख़ुद का कोई आत्मसम्मान रह ही नहीं जाता है ... 


क्या ऐसे खोखले संस्कार जो पीड़िता से "असल में" जीने का ही हक़ ही छीन लेते हैं, किसी भी प्रकार से निभाने योग्य हैं ? अत्याचारी तो नहीं निभा रहा उनको ! फ़िर भी सम्मान का पात्र है क्योंकि वो पुरुष है इसलिए ? 

#alwaysvikas  

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