सांख्ययोग
श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि क्यों व्यर्थ चिंता करते हो। आत्मा तो अजर -अमर है। वह कभी नहीं मरती। सिर्फ यह शरीर मरता है।
यह संसार और इसके लोग तुम्हारे बनाये हुए नहीं है। इनके मोह में क्यों बँध रहे हो ! इनके खो जाने का क्यों शोक कर रहे हो। ये सब तो पहले ही मर चुके हैं। और कई बार पैदा भी हो चुके हैं।
तुम्हे सिर्फ धर्म की रक्षा के लिए यह युद्ध करना है। यही एक क्षत्रिय का कर्म है। यह सुनकर अर्जुन श्री कृष्ण से कहता है कि अभी भी उसके मन में बहुत से संशय हैं। और उसे सब कुछ विस्तार से बतायें।
कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 02 धन्यवाद