कर्मयोग
श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन हर किसी को इस संसार में अपना कर्म करना चाहिए। लेकिन फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए।
किसी भी चीज में आसक्त हुए बिना कर्म करना चाहिए। और वह कर्म, धर्म के अनुसार किया जाना चाहिए।
सारे कर्मों को ईश्वर को समर्पित किया जाना चाहिए।
यदि तुम युद्ध नहीं भी करते हो तो वह भी एक कर्म ही होगा। लेकिन इससे धरती पर बुरे लोगों की संख्या बढ़ जाएगी। जिसकी वजह से पाप फ़ैल जायेगा।
इसलिए तुम मोह त्याग कर युद्ध करो। यही तुम्हारा कर्म है।
कृपया गीता के अध्ययन को बार बार सुने. प्रस्तुत है अध्याय - 03 धन्यवाद