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ना जाने किस प्यार में मै पड गया था।
रातों की नीदों का कतल कर गया था।।
ये मरीजों सा बना देने वाला फलसफा था।
वैरागी को राग देने का ढकोसला था।।
मै मदमस्त पक्षी गगन चूमता था।
तनावों का हल लिए बगल घूमता था।।
कहा के ये मखमल के गद्दे , कहा कि ये AC.
खटमलों के संग सपनों में झूमता था।।
ना जाने किस प्यार में मै पड गया ।
रातों की नीदों का कतल कर गया था।।
जाने क्या नजर आया होगा इस दिल को।
मति में मेरे जो ये घर कर गया था।।
जिसने बस जाना हो रातों को सपनों से।
कोश में उसके सूनापन चढ़ गया था।।
ना जाने किस प्यार में मै पड गया ।
रातों की नीदों का कतल कर गया था।।
तो दिखादो धधक और कह दो इस दिल से,।
कि लौटा दे वो मेरी रातों की नीदे।
वो मेरे निश्चल उड़ानों के सपने।।
वो बिनर्थ बातों पे ठहाके का लगाना।
उस आनंदित मन का वो प्यारा सा मुखड़ा।।
लौटा दे ये सब कहीं से भी ला के।
ना जाने किस प्यार में मै पड गया ।
रातों की नीदों का कतल कर गया था।
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