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पिछली कथाओं में, हमने जाना कि कैसे श्रीराम ने अपने बाल्यकाल से लेकर प्रथम यज्ञरक्षा तक धर्म की परिभाषा को जीना शुरू किया। कैसे महर्षि विश्वामित्र के साथ उनकी यात्रा में शस्त्रज्ञान मिला, पहली बार राक्षसों से सामना हुआ, और कैसे राम ने अपने चरणों से अहल्या को मोक्ष देकर करुणा का प्रकाश फैलाया। हमने देखा कि कैसे शिवधनुष भेदन के माध्यम से राम ने केवल शक्ति नहीं, मर्यादा को प्रकट किया, और कैसे जनकपुर में सीता सहित चारों भाइयों के विवाह के माध्यम से अयोध्या और मिथिला का पवित्र संगम हुआ। और जब परशुराम, क्रोध और तप के प्रतीक बनकर सभा में आए, तब राम ने केवल धैर्य और नम्रता से नहीं, बल्कि अपने ईश्वरत्व की झलक से उन्हें भी शांत कर दिया।
आज की कथा में, हम बालकाण्ड के समापन की ओर बढ़ते हैं—जहाँ हम पीछे मुड़कर देखते हैं और उन सभी घटनाओं को पुनः स्मरण करते हैं जिन्होंने राम को राम बनाया। यह वह पड़ाव है जहाँ एक अवतार की पहचान प्रारंभ होती है, जहाँ बालक राम, मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की ओर पहला कदम रखते हैं। तो आइए, साथ चलें इस आत्मस्मरण की ओर—जहाँ राम का जन्म, यज्ञ की रक्षा, गुरु की सेवा, करुणा का प्राकट्य और धर्म की स्थापना—इन सबका संगम बालकाण्ड के रूप में हमारे हृदय में सदा के लिए अंकित हो जाता है।
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आज की कथा में, हम बालकाण्ड के समापन की ओर बढ़ते हैं—जहाँ हम पीछे मुड़कर देखते हैं और उन सभी घटनाओं को पुनः स्मरण करते हैं जिन्होंने राम को राम बनाया। यह वह पड़ाव है जहाँ एक अवतार की पहचान प्रारंभ होती है, जहाँ बालक राम, मर्यादा पुरुषोत्तम बनने की ओर पहला कदम रखते हैं। तो आइए, साथ चलें इस आत्मस्मरण की ओर—जहाँ राम का जन्म, यज्ञ की रक्षा, गुरु की सेवा, करुणा का प्राकट्य और धर्म की स्थापना—इन सबका संगम बालकाण्ड के रूप में हमारे हृदय में सदा के लिए अंकित हो जाता है।
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