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पिछली कथा में, हमने देखा कि कैसे राम ने पिता के वचनों को निभाने के लिए राज्य का त्याग किया, और सीता ने उनके साथ वनगमन का संकल्प लिया। कौशल्या की पीड़ा, सीता की दृढ़ता और राम का संतुलन—इन सबने हमें एक आदर्श परिवार की मर्यादा और धर्मबोध का दर्शन कराया।
आज की कथा वहाँ से आगे बढ़ती है, जहाँ एक और दिव्य पात्र अपनी भूमिका निभाने आता है। लक्ष्मण, एक भाई, जो केवल सगे संबंधों से नहीं, बल्कि प्राणों, निष्ठा और प्रेम के सूत्रों से जुड़ा है। आज हम देखेंगे कि जब राम वनगमन की तैयारी कर रहे थे, तब लक्ष्मण ने न केवल अपने मन की बात कही, बल्कि भ्रातृ-प्रेम को तप और भक्ति का स्वरूप दे दिया। यह कथा हमें दिखाएगी कि कैसे एक अनुज अपना सब कुछ छोड़कर, केवल राम की सेवा और उनकी सुरक्षा का लक्ष्य लेकर खड़ा होता है। वह उर्मिला को, राजसी सुखों को, अपनी इच्छाओं को त्याग कर राम और सीता के साथ चल पड़ता है, केवल इसलिए कि उनका हर कष्ट पहले उसे भोगना हो। तो आइए, जुड़िए हमारे साथ इस दिव्य प्रसंग में— जहाँ लक्ष्मण का प्रेम केवल भावना नहीं, बल्कि एक अनंत तपस्या बन जाता है। यह प्रसंग केवल रामायण का हिस्सा नहीं, बल्कि हर युग के लिए भ्रातृत्व और निष्ठा का अमर आदर्श है।
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आज की कथा वहाँ से आगे बढ़ती है, जहाँ एक और दिव्य पात्र अपनी भूमिका निभाने आता है। लक्ष्मण, एक भाई, जो केवल सगे संबंधों से नहीं, बल्कि प्राणों, निष्ठा और प्रेम के सूत्रों से जुड़ा है। आज हम देखेंगे कि जब राम वनगमन की तैयारी कर रहे थे, तब लक्ष्मण ने न केवल अपने मन की बात कही, बल्कि भ्रातृ-प्रेम को तप और भक्ति का स्वरूप दे दिया। यह कथा हमें दिखाएगी कि कैसे एक अनुज अपना सब कुछ छोड़कर, केवल राम की सेवा और उनकी सुरक्षा का लक्ष्य लेकर खड़ा होता है। वह उर्मिला को, राजसी सुखों को, अपनी इच्छाओं को त्याग कर राम और सीता के साथ चल पड़ता है, केवल इसलिए कि उनका हर कष्ट पहले उसे भोगना हो। तो आइए, जुड़िए हमारे साथ इस दिव्य प्रसंग में— जहाँ लक्ष्मण का प्रेम केवल भावना नहीं, बल्कि एक अनंत तपस्या बन जाता है। यह प्रसंग केवल रामायण का हिस्सा नहीं, बल्कि हर युग के लिए भ्रातृत्व और निष्ठा का अमर आदर्श है।
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