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पिछली कथा में, हमने देखा कि कैसे राम ने माताओं और गुरुजनों से आशीर्वाद लिया। कौशल्या के आँचल से लेकर सुमित्रा के दृढ़ आदेश तक, कैकेयी के संकोच भरे स्वीकार से लेकर गुरु वशिष्ठ और माता अरुंधती की सीख तक, हर आशीर्वाद में आँसू भी थे और धर्म की ज्योति भी। सीता ने धैर्य और निष्ठा का वचन दिया, लक्ष्मण ने सेवा का संकल्प लिया, और सुमंत्र ने स्वयं को रथी और सहभागी बनाकर इस धर्मयात्रा से जोड़ लिया।
आज की कथा हमें वहाँ ले जाती है, जब हम देखेंगे कि कैसे आँसुओं और सिसकियों के बीच रथ अयोध्या से निकलकर वन की सीमा की ओर बढ़ता है। वहाँ, गंगा का पवित्र तट उनका इंतज़ार कर रहा है, मानो संसार के सुख और त्याग के बीच एक अंतिम रेखा खींची हो। निषादराज गुह का आगमन होगा, नावों का सहारा मिलेगा और फिर गंगा पार करके राम सचमुच वनभूमि में प्रवेश करेंगे। आज की कथा में, आप अनुभव करेंगे—वह क्षण जब राजमार्ग समाप्त होता है और वनपथ शुरू होता है। जब सुख पीछे छूट जाता है और धर्म की अग्निपरीक्षा सामने खड़ी होती है। तो आइए, चलें हमारे साथ उस यात्रा पर, जहाँ से वनवास की शुरुआत आरंभ होता है।
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By Aradhya Mishraपिछली कथा में, हमने देखा कि कैसे राम ने माताओं और गुरुजनों से आशीर्वाद लिया। कौशल्या के आँचल से लेकर सुमित्रा के दृढ़ आदेश तक, कैकेयी के संकोच भरे स्वीकार से लेकर गुरु वशिष्ठ और माता अरुंधती की सीख तक, हर आशीर्वाद में आँसू भी थे और धर्म की ज्योति भी। सीता ने धैर्य और निष्ठा का वचन दिया, लक्ष्मण ने सेवा का संकल्प लिया, और सुमंत्र ने स्वयं को रथी और सहभागी बनाकर इस धर्मयात्रा से जोड़ लिया।
आज की कथा हमें वहाँ ले जाती है, जब हम देखेंगे कि कैसे आँसुओं और सिसकियों के बीच रथ अयोध्या से निकलकर वन की सीमा की ओर बढ़ता है। वहाँ, गंगा का पवित्र तट उनका इंतज़ार कर रहा है, मानो संसार के सुख और त्याग के बीच एक अंतिम रेखा खींची हो। निषादराज गुह का आगमन होगा, नावों का सहारा मिलेगा और फिर गंगा पार करके राम सचमुच वनभूमि में प्रवेश करेंगे। आज की कथा में, आप अनुभव करेंगे—वह क्षण जब राजमार्ग समाप्त होता है और वनपथ शुरू होता है। जब सुख पीछे छूट जाता है और धर्म की अग्निपरीक्षा सामने खड़ी होती है। तो आइए, चलें हमारे साथ उस यात्रा पर, जहाँ से वनवास की शुरुआत आरंभ होता है।
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