ये तो बस नज़रिए पर निर्भर करता है,
किसी को गिलास आधा खाली तो किसी को आधा भरा दिखता है।
किसी को सिर्फ कमियां तो किसी को उनसे बाहर निकलने का रास्ता नज़र आता है।
ये तो बस नज़रिए पर निर्भर करता है।कहिए,
सही है ना.... हम क्या करते है, क्या सोचते है इससे हमारी आदतें बनती है और यही आदतें धीरे धीरे हमारा व्यक्तित्व निर्माण करती है।आप क्या सोचते है उस बारे में?? मेरे साथ जरूर शेयर कीजियेगा।