Kamaal e maeykashi

Kamaal e maeykashi

By Vrindavan

"मोहन और मस्तों के दिल का मिलता है कहीं कुछ राज़ नहीं। लड़ते और झगड़ते हैं, रूठते और मचलते हैं, मुख कमल से लेकिन जाहिर होते नाराज़ नहीं। विरह वेदना की चोटें दिल भेद भेद कर जाती हैं, आंखों से आंसू बहते... more


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