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आलेख : श्री कृष्णमोहन मिश्र /सुजॉय चटर्जी
स्वर : अनुज श्रीवास्तव
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक कार्यक्रम ’एक गीत सौ अफ़साने’ में आप सभी श्रोताओं का फिर एक बार स्वागत है। केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले... भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में कुछ ऐसे गीत दर्ज हैं जिनकी रचना-प्रक्रिया पर्याप्त रोचक तो हैं ही, उनमे कलात्मक सृजनशीलता के दर्शन भी होते हैं। 1956 में प्रदर्शित फिल्म 'बसन्त बहार' में एक ऐसा गीत रचा गया, जिसे राग आधारित गीत कहते संकोच का अनुभव होता है। गीत की रचना-प्रक्रिया की जानकारी दिये बिना यदि किसी संगीत-प्रेमी को सुना दिया जाए तो कोई आश्चर्य नहीं कि श्रोता इसे राग बसन्त बहार का एक छोटा खयाल कह कर सम्बोधित कर दे। दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की आज की कड़ी का शोध और आलेख स्वर्गीय कृष्णमोहन मिश्र जी की कलम से। जी हाँ, कई वर्ष पूर्व यह लेख उन्होंने अपने शास्त्रीय संगीत आधारित स्तम्भ के लिए लिखा था। उनकी स्मृति को जीवित रखते हुए उनके इस लेख पर आज का यह अंक आधारित है।
आलेख : श्री कृष्णमोहन मिश्र /सुजॉय चटर्जी
स्वर : अनुज श्रीवास्तव
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक कार्यक्रम ’एक गीत सौ अफ़साने’ में आप सभी श्रोताओं का फिर एक बार स्वागत है। केतकी गुलाब जूही चम्पक बन फूले... भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में कुछ ऐसे गीत दर्ज हैं जिनकी रचना-प्रक्रिया पर्याप्त रोचक तो हैं ही, उनमे कलात्मक सृजनशीलता के दर्शन भी होते हैं। 1956 में प्रदर्शित फिल्म 'बसन्त बहार' में एक ऐसा गीत रचा गया, जिसे राग आधारित गीत कहते संकोच का अनुभव होता है। गीत की रचना-प्रक्रिया की जानकारी दिये बिना यदि किसी संगीत-प्रेमी को सुना दिया जाए तो कोई आश्चर्य नहीं कि श्रोता इसे राग बसन्त बहार का एक छोटा खयाल कह कर सम्बोधित कर दे। दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की आज की कड़ी का शोध और आलेख स्वर्गीय कृष्णमोहन मिश्र जी की कलम से। जी हाँ, कई वर्ष पूर्व यह लेख उन्होंने अपने शास्त्रीय संगीत आधारित स्तम्भ के लिए लिखा था। उनकी स्मृति को जीवित रखते हुए उनके इस लेख पर आज का यह अंक आधारित है।