"तेरा हिज्र मेरा नसीब है, तेरा ग़म ही मेरी हयात है, मुझे तेरी दूरी का ग़म हो क्यों, तू कहीं भी हो मेरे साथ है..." - फ़िल्म ’रज़िआ सुल्तान’ की मशहूर ग़ज़ल। कब्बन मिर्ज़ा की अनोखी आवाज़, ख़य्याम का ठहराव भरा सुरीला संगीत, और निदा फ़ाज़ली के पुर-असर बोल। कैसे बनी यह ग़ज़ल? क्यों देश भर से पचासों गायक आये इस ग़ज़ल का ऑडिशन टेस्ट देने? फिर कैसे चुनी गई कब्बन मिर्ज़ा की आवाज़? क्यों रिकॉर्डिंग् के “दिन रिकॉर्डिंग् की सेटिंग् बदली गई? कैसी रही निदा फ़ाज़ली और कमाल अमरोही की मीटिंग् इस ग़ज़ल के सन्दर्भ में? जानिए ये सब, आज के इस अंक में।