’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक कार्यक्रम ’एक गीत सौ अफ़साने’ में आप सभी श्रोताओं का फिर एक बार स्वागत है। नमस्कार दोस्तों! यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें हम बातें करते हैं किसी एक गीत की, उससे जुड़े तमाम पहलुओं की, गीतों की रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित रोचक जानकारियों की, और ज़िक्र होता है दिलचस्प घटनाओं का। जहाँ आज रेडियो, टेलीविज़न और इन्टरनेट पर इस तरह के कार्यक्रमों की भरमार है, वहाँ इन कार्यक्रमों में दी जा रही जानकारियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के इस कार्यक्रम की ख़ास बात यह है कि इसमें दी गई जानकारियाँ और तमाम तथ्य ऐसे साक्षात्कारों से लिए गए होते हैं जो कलाकारों या उनके परिवार जनों द्वारा ही कहे गए होते हैं। स्थापित पत्रिकाओं, आकाशवाणी व दूरदर्शन के स्थापित कार्यक्रमों तथा प्रकाशित पुस्तकों से प्राप्त जानकारियों से सजता है ’एक गीत सौ अफ़साने’।
आज की कड़ी में हम लेकर आए हैं 1961 की फ़िल्म ’हम दोनों’ की प्रसिद्ध पार्थना गीत "अल्लाह तेरो नाम, ईश्वर तेरो नाम" से सम्बन्धित कुछ रोचक बातें। क्या-क्या ख़ास बातें हैं इस भजन में? इस भजन की गायिका लता मंगेशकर के क्या विचार हैं इसके बारे में? शुरू-शुरू में लता जी क्यों नहीं गाने वाली थीं इस भजन को? फिर बाद में वे क्यों तैयार हो गईं इसे गाने के लिए? तिमिर बरन और उमा देवी से लेकर अजीत वर्मन, अनूप जलोटा और स्वानन्द किरकिरे तक, क्या कहना है इस भजन के चाहने वालों का? आज के परिप्रेक्ष्य में कितना सार्थक है यह भजन? ये सब कुछ आज के इस अंक में।