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आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : शिवेन्द्र शुक्ला
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक कार्यक्रम ’एक गीत सौ अफ़साने’ में आप सभी श्रोताओं का फिर एक बार स्वागत है। नमस्कार दोस्तों! यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें हम बातें करते हैं किसी एक गीत की, उससे जुड़े तमाम पहलुओं की, गीतों की रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित रोचक जानकारियों की, और ज़िक्र होता है दिलचस्प घटनाओं का। जहाँ आज रेडियो, टेलीविज़न और इन्टरनेट पर इस तरह के कार्यक्रमों की भरमार है, वहाँ इन कार्यक्रमों में दी जा रही जानकारियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के इस कार्यक्रम की ख़ास बात यह है कि इसमें दी गई जानकारियाँ और तमाम तथ्य ऐसे साक्षात्कारों से लिए गए होते हैं जो कलाकारों या उनके परिवार जनों द्वारा ही कहे गए होते हैं। स्थापित पत्रिकाओं, आकाशवाणी व दूरदर्शन के स्थापित कार्यक्रमों तथा प्रकाशित पुस्तकों से प्राप्त जानकारियों से सजता है ’एक गीत सौ अफ़साने’।
आज की कड़ी में हम लेकर आए हैं 1960 की फ़िल्म ’लाल क़िला’ की मशहूर ग़ज़ल "ना किसी की आंख का नूर हूँ" से सम्बन्धित कुछ बेहद दिलचस्प जानकारी। आख़िरी मुग़ल बादशाह ने यह ग़ज़ल कहाँ और किन हालातों में लिखी होगी? इस ग़ज़ल के शाइर को लेकर किस तरह के संशय और सवाल खड़े होते हैं? क्या वाक़ई यह ग़ज़ल बहादुर शाह ’ज़फ़र’ ने लिखी थी? क्या सम्बन्ध है इस ग़ज़ल का जावेद अख़्तर के परिवार के साथ? जानिए संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी और मदन मोहन के भी उदगार इस ग़ज़ल को लेकर। ये सब कुछ आज के इस अंक में।
आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : शिवेन्द्र शुक्ला
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक कार्यक्रम ’एक गीत सौ अफ़साने’ में आप सभी श्रोताओं का फिर एक बार स्वागत है। नमस्कार दोस्तों! यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें हम बातें करते हैं किसी एक गीत की, उससे जुड़े तमाम पहलुओं की, गीतों की रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित रोचक जानकारियों की, और ज़िक्र होता है दिलचस्प घटनाओं का। जहाँ आज रेडियो, टेलीविज़न और इन्टरनेट पर इस तरह के कार्यक्रमों की भरमार है, वहाँ इन कार्यक्रमों में दी जा रही जानकारियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के इस कार्यक्रम की ख़ास बात यह है कि इसमें दी गई जानकारियाँ और तमाम तथ्य ऐसे साक्षात्कारों से लिए गए होते हैं जो कलाकारों या उनके परिवार जनों द्वारा ही कहे गए होते हैं। स्थापित पत्रिकाओं, आकाशवाणी व दूरदर्शन के स्थापित कार्यक्रमों तथा प्रकाशित पुस्तकों से प्राप्त जानकारियों से सजता है ’एक गीत सौ अफ़साने’।
आज की कड़ी में हम लेकर आए हैं 1960 की फ़िल्म ’लाल क़िला’ की मशहूर ग़ज़ल "ना किसी की आंख का नूर हूँ" से सम्बन्धित कुछ बेहद दिलचस्प जानकारी। आख़िरी मुग़ल बादशाह ने यह ग़ज़ल कहाँ और किन हालातों में लिखी होगी? इस ग़ज़ल के शाइर को लेकर किस तरह के संशय और सवाल खड़े होते हैं? क्या वाक़ई यह ग़ज़ल बहादुर शाह ’ज़फ़र’ ने लिखी थी? क्या सम्बन्ध है इस ग़ज़ल का जावेद अख़्तर के परिवार के साथ? जानिए संगीतकार एस. एन. त्रिपाठी और मदन मोहन के भी उदगार इस ग़ज़ल को लेकर। ये सब कुछ आज के इस अंक में।