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आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : डॉ. शबनम खानम
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक कार्यक्रम ’एक गीत सौ अफ़साने’ में आप सभी श्रोताओं का फिर एक बार स्वागत है। नमस्कार दोस्तों! यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें हम बातें करते हैं किसी एक गीत की, उससे जुड़े तमाम पहलुओं की, गीतों की रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित रोचक जानकारियों की, और ज़िक्र होता है दिलचस्प घटनाओं का। जहाँ आज रेडियो, टेलीविज़न और इन्टरनेट पर इस तरह के कार्यक्रमों की भरमार है, वहाँ इन कार्यक्रमों में दी जा रही जानकारियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के इस कार्यक्रम की ख़ास बात यह है कि इसमें दी गई जानकारियाँ और तमाम तथ्य ऐसे साक्षात्कारों से लिए गए होते हैं जो कलाकारों या उनके परिवार जनों द्वारा ही कहे गए होते हैं। स्थापित पत्रिकाओं, आकाशवाणी व दूरदर्शन के स्थापित कार्यक्रमों तथा प्रकाशित पुस्तकों से प्राप्त जानकारियों से सजता है ’एक गीत सौ अफ़साने’।
आज की कड़ी में हम लेकर आए हैं गायक अल्ताफ़ राजा के मशहूर गीत "तुम तो ठहरे परदेसी" से जुड़ी रोचक बातें। क्यों 1990 में रचे इस गीत को रिकॉर्ड पर उतारने में लग गए पूरे छह साल? स्टेज शोज़ में इस गीत को गा-गा कर थक जाने के बावजूद क्यों नहीं पीछा छुड़ा सके इस गीत से अल्ताफ़ राजा अपने आप को? फ़िल्म ’रात और दिन’ के किस गीत का अलताफ़ राजा के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा कि वे संगीत सीखने लगे? किस फ़िल्म निर्माता वैष्णों देवी के दर्शन से वापस आकर अल्ताफ़ राजा को यह ख़बर दी कि कटरा से लेकर वैष्णों देवी तक, यानी नीचे से ऊपर तक सिर्फ़ "तुम तो ठहरे परदेसी" ही सुनाई दे रहा था? और उसी फ़िल्म निर्माता ने फिर अल्ताफ़ राजा से अपनी फ़िल्म का कौन सा गीत गवाया जो बेहद मक़बूल हुआ? कैसी यादें हैं अल्ताफ़ राजा की "तुम तो ठहरे परदेसी" को लेकर? ये सब कुछ आज के इस अंक में।
आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : डॉ. शबनम खानम
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक कार्यक्रम ’एक गीत सौ अफ़साने’ में आप सभी श्रोताओं का फिर एक बार स्वागत है। नमस्कार दोस्तों! यह एक ऐसा कार्यक्रम है जिसमें हम बातें करते हैं किसी एक गीत की, उससे जुड़े तमाम पहलुओं की, गीतों की रचना प्रक्रिया से सम्बन्धित रोचक जानकारियों की, और ज़िक्र होता है दिलचस्प घटनाओं का। जहाँ आज रेडियो, टेलीविज़न और इन्टरनेट पर इस तरह के कार्यक्रमों की भरमार है, वहाँ इन कार्यक्रमों में दी जा रही जानकारियों की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के इस कार्यक्रम की ख़ास बात यह है कि इसमें दी गई जानकारियाँ और तमाम तथ्य ऐसे साक्षात्कारों से लिए गए होते हैं जो कलाकारों या उनके परिवार जनों द्वारा ही कहे गए होते हैं। स्थापित पत्रिकाओं, आकाशवाणी व दूरदर्शन के स्थापित कार्यक्रमों तथा प्रकाशित पुस्तकों से प्राप्त जानकारियों से सजता है ’एक गीत सौ अफ़साने’।
आज की कड़ी में हम लेकर आए हैं गायक अल्ताफ़ राजा के मशहूर गीत "तुम तो ठहरे परदेसी" से जुड़ी रोचक बातें। क्यों 1990 में रचे इस गीत को रिकॉर्ड पर उतारने में लग गए पूरे छह साल? स्टेज शोज़ में इस गीत को गा-गा कर थक जाने के बावजूद क्यों नहीं पीछा छुड़ा सके इस गीत से अल्ताफ़ राजा अपने आप को? फ़िल्म ’रात और दिन’ के किस गीत का अलताफ़ राजा के मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव पड़ा कि वे संगीत सीखने लगे? किस फ़िल्म निर्माता वैष्णों देवी के दर्शन से वापस आकर अल्ताफ़ राजा को यह ख़बर दी कि कटरा से लेकर वैष्णों देवी तक, यानी नीचे से ऊपर तक सिर्फ़ "तुम तो ठहरे परदेसी" ही सुनाई दे रहा था? और उसी फ़िल्म निर्माता ने फिर अल्ताफ़ राजा से अपनी फ़िल्म का कौन सा गीत गवाया जो बेहद मक़बूल हुआ? कैसी यादें हैं अल्ताफ़ राजा की "तुम तो ठहरे परदेसी" को लेकर? ये सब कुछ आज के इस अंक में।