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ओढ़कर छांव रहबर का भी, आहिस्ता क्यों हूँ?
अबस मैं अजनबी इस दौड़ का, हिस्सा क्यों हूँ?
तबस्सुम सी नज़र से, नज़्में अक्सर मुझसे पूछे है,
हरएक अन्जाम में मैं, हार का किस्सा क्यों हूँ?
***
ओढ़कर छांव रहबर का भी, आहिस्ता क्यों हूँ?
अबस मैं अजनबी इस दौड़ का, हिस्सा क्यों हूँ?
तबस्सुम सी नज़र से, नज़्में अक्सर मुझसे पूछे है,
हरएक अन्जाम में मैं, हार का किस्सा क्यों हूँ?
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