Zehan is a weekly podcast where Ayan Sharma recites his poems.
... moreShare Zehan
Share to email
Share to Facebook
Share to X
By Ayan Sharma
Zehan is a weekly podcast where Ayan Sharma recites his poems.
... moreThe podcast currently has 17 episodes available.
तू लिखे या ना लिखे, मसरूफ़ होना चाहिए।
अनकहे से वाक्य को, मशहूर होना चाहिए।
बेज़ुबानी बात के हर, मेज़बानी अक्षरों को
काले गहरे पन्नों पर, महफूज़ होना चाहिए।।
***
ओढ़कर छांव रहबर का भी, आहिस्ता क्यों हूँ?
अबस मैं अजनबी इस दौड़ का, हिस्सा क्यों हूँ?
तबस्सुम सी नज़र से, नज़्में अक्सर मुझसे पूछे है,
हरएक अन्जाम में मैं, हार का किस्सा क्यों हूँ?
***
महफ़िल तेरी, शिरक़त मेरी, बेशक़ बड़ी ज़हमत।
तेरे ही नाम में चर्चा मेरा, गुमनाम काफी है।।
मेरी हैं गर्द सी गुस्ताखियां, और ग़ैरती से ग़म।
मगर हों दिल में तेरी धड़कनें, एहसास काफी है।।
***
ख़ुदा शौक़ीन है "ज़ेहन" की ज़हे-नसीब नज़्मों का।
मौसम शांत हो अक्सर कर वो बूंदे गिराया है।।
अपनी खामोशियों को यूं जो पन्नो पर उतारा है।
बनेंगे अश्क़ के कारण या कुर्बत भी गवारा है।
बख़ूबी जानता हर इक अदद कमज़ोरियाँ मेरी।
आँखे बंद थी, सोया था, सपनों से जगाया है।।
बहुत शौक़ीन है अल्लाह बख़ूबी ख़ुद लिखाया है।।
***
बेपरवाहियाँ मेरी, उसी परवरिश का हिस्सा हैं,
जहाँ मुलाकात में बिछड़ने का, रिवाज़ बाकी है।
ये बूंदे हैं बस जो, कहकाशीं रातों में गिर आयीं,
अभी मिलना मेरा, घुलना तेरा, बरसात बाकी है।।
समूचे भूधरा को, घरघटा नें घेर रखा है,
महज़ सपना तेरा सपना, तुझे सपना मुबारक़।
तेरी आंखें जो चाहे, जलते नभ का अंश भी देखे,
महज़ चंदा दिखा शीतल, तुझे चंदा मुबारक़।।
***
गर्दिश में कुछ, गुमनाम सी, गुस्ताख़ हकीक़त,
अनकहे, अल्फ़ाज़ के, अस्बाब हकीक़त।
ज़मी पे तू, है आसमां तेरे आईने में,
ज़फ़र मिलती नहीं फ़रियाद से, बे-दाद हकीक़त।।
***
नज़र से दूर इतना
ख़ुद को मख़मल में लपेटे हो।
"ज़ेहन" बस याद आयी है तेरी
रोया नहीं हूँ मैं।।
मैं रखता हूँ कदम कुछ
बेतुकी सी बेरुख़ी के बीच।
है रस्ते की समझ कच्ची थोड़ी
खोया नहीं हूँ मैं।।
मुझे अब नींद आती है
तेरी शैतानियों के संग।
है मेरी धड़कनें कुछ तेज़ अभी
सोया नहीं हूँ मैं।।
Dear listeners. We are grateful for your overwhelming love. S we have decided to come up with season two. So please stay tuned.
क्या लिखूँ
मैं लिखूँ कुछ अनकहा
या वो लिखूँ, जो कहा नही?
तू वो रंग है, जो रंगा नही
कुछ श्वेत है, पर हवा नही।
तू कुछ अजनबी, कुछ महज़बीं
इक अनछुआ एहसास है।
या ये कहूँ, तू कुछ नहीं
कुछ तुझमे है, जो ख़ास है।
The podcast currently has 17 episodes available.