This episode is only a recitation of a poem which i feel is very apt for the situation. Remember we'll fight coronavirus together; united. This is the poem:. ध्वंस मुँह बाये खड़ा है मृत्यु का पहरा कड़ा है; घाट धू-धू जल रहे हैं हर लहर मातम जड़ा है; यह बिखरने का नहीं, हिम्मत जुटाने का समय है; मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है।। मृत्यु का विकराल वैभव इस जगत् पर छा चुका है; आँसुओं के अर्घ्य से कब काल का ताण्डव रुका है; अब हमें अड़ना पड़ेगा; अनवरत बढ़ना पड़ेगा: श्वास पर विश्वास रखकर; यह समर लड़ना पड़ेगा; आत्मबल से भाग्य का रुख मोड़ आने का समय है।। मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है।। चाह अमृत की रखी पर, विष उलीचा है जलधि ने; सृष्टि भर के प्राण दूभर कर दिये फिर से नियति ने; काल प्रलयंकर बना है; मृत्यु हर कंकर बना है; जब हवा में विष घुला है; तब कोई शंकर बना है; फिर इसी जलधाम से अमृत जुटाने का समय है।। मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है।। अपशकुन पर ध्यान क्यों दें, हम शकुन के गीत गाएँ; इस अंधेरे से डरें क्यों, क्यों न इक दीपक जलाएँ; हर लहर का क्रोध फूटे; साथ जीवट का न छूटे; सिर्फ़ हिम्मत साथ रखना; टूटती हो नाव टूटे; यह प्रलय पर पाँव रखकर पार जाने का समय है।। मौत के पंजे से जीवन छीन लाने का समय है।। - चिराग़ जैन