मैं आज़ाद हो जाता हूँ,
हर एक तुम्हारे
सिद्ध-स्वर में घुल कर,
बोली से व्यक्त
कहानी सुन-सुन कर
मैं आज़ाद हो जाता हूँ।
शब्दों का
कभी जाना नहीं था,
की होता होगा इतना भी प्रभाव-
तुम्हारे शब्दों को पढ़-पढ़ कर
मैं आज़ाद हो जाता हूँ।
अंधेरे में
भयावह मन ने
उचट-उचक कर
जकड़ा जब कभी-
आँखों की तुम्हारी
रोशनी से सट-सट कर
मैं आज़ाद हो जाता हूँ।
धूप में प्रताड़ित,
तन-जीवन, दिखें फिर भी
सुशोभित फूल तुम्हें-
तुम्हारे दृष्टिकोण की
पत्तियों में छना
सूर्य देख-देख कर
मैं आज़ाद हो जाता हूँ।
छोटे से जीवन की
लंबि डगर
पाने को जगत का
अथाह अनुभव-
तुम्हारे साथ चलने के
सौभाग्य को पा-पाकर,
मैं आज़ाद हो जाता हूँ।