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आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : शिवेन्द्र शुक्ला
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
आज की कड़ी में हम जिस गीत के बनने की कहानी सुनाने जा रहे हैं, वह है फ़िल्म ’प्यार ही प्यार’ का गीत "मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ तेरे प्यार में ऐ कविता"। हसरत जयपुरी, शंकर-जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी साहब के टीम की यादगार रचना।"मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ", इस गीत का मुखड़ा हसरत जयपुरी के बजाय जयकिशन ने क्यों लिखा? इस गीत के मुखड़े में बस एक ही पंक्ति क्यों है? और क्यों अन्तरे से मुखड़े पर वापस आने वाली कोई connecting line नहीं है इस गीत में? गाना रिकॉर्ड हो जाने के बाद कैसी समस्या उत्पन्न हुई थी? ये सब जानने के लिए आज का यह अंक सुनिए।
आलेख : सुजॉय चटर्जी
स्वर : शिवेन्द्र शुक्ला
प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन
आज की कड़ी में हम जिस गीत के बनने की कहानी सुनाने जा रहे हैं, वह है फ़िल्म ’प्यार ही प्यार’ का गीत "मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ तेरे प्यार में ऐ कविता"। हसरत जयपुरी, शंकर-जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी साहब के टीम की यादगार रचना।"मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ", इस गीत का मुखड़ा हसरत जयपुरी के बजाय जयकिशन ने क्यों लिखा? इस गीत के मुखड़े में बस एक ही पंक्ति क्यों है? और क्यों अन्तरे से मुखड़े पर वापस आने वाली कोई connecting line नहीं है इस गीत में? गाना रिकॉर्ड हो जाने के बाद कैसी समस्या उत्पन्न हुई थी? ये सब जानने के लिए आज का यह अंक सुनिए।